अखिलेश अखिल
डर तो डर है। और डर अगर मन में बैठ जाए तो फिर उसे आप क्या कहेंगे ?लगता है पिछले दस सालों में पहली बार बीजेपी और खुद प्रधानमंत्री मोदी डरे हुए लग रहे हैं। इतनी बड़ी पार्टी ,इतना बड़ा संगठन और संसद में 300 से ज्यादा सांसद होने बाद भी डर ? या कोई मामूली बात नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि क्या बीजेपी और पीएम मोदी को यह लगने लगा है कि जिस राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के आसरे अब तक वह राजनीति कर रहे थे ,विपक्ष ने एक झटके में सबको तहस नहस कर दिया है। हालांकि विपक्षी की तरफ से अभी कोई भी वार नहीं हुआ है। अभी तो केवल विपक्ष की दो बैठके ही हुई है और विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया रखा गया है। लेकिन जिस दिन से इस इंडिया का नाम घोषित हुआ ,मानो बीजेपी और खुद पीएम मोदी को होश उड़ गए। यह समझ से परे है कि आखिर इस नाम में रखा ही क्या है ? खुद प्रधानमंत्री मोदी भी तो जबसे सत्ता में हैं दर्जनों योजनाओं का नाम इंडिया जोड़कर रखते चले आ रहे हैं। पिछले चुनाव में तो उन्होंने वोट फॉर इंडिया का ही नारा दिया था। दर्जनों योजनाओं के नाम को इंडिया से जोड़ा था। लेकिन अब वही इंडिया बीजेपी को कहलाने लगा है। खुद पीएम मोदी को भी लगने लगा है कि अगर समय रहते इस पर चोट नहीं किया गया तो खेल खराब हो जायेगा।
तो अब इंडिया को ही ख़त्म करने का खेल शुरू हो गया है। संविधान में दर्ज है इंडिया दैट भारत। अब तक देश के लोग इस नाम पर गर्व करते रहे हैं लेकिन अब बीजेपी के लोगों को लगने लगा है कि इंडिया तो अंग्रेजो का दिया नाम है। इस देश का नाम तो भारत है। भारत वर्ष है और फिर हिन्दुस्तान है। इसलिए अब देश का फिर से नया नामकरण किया जाए। इसका नाम बदला जाए। इंडिया शब्द को हटाया जाए और फिर इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाए।
यह कितना बड़ा खेल है इसको जानकार ही पसीना छूट जाता है। कल तक जो प्रधानमंत्री अपने हर भाषण में इंडिया कहते इतराते नहीं थे अब उसी इंडिया से उन्हें चीड़ होने लगी है। आजाद भारत का यह ऐसा दौर है जिसमे अब भारत के नबाम को बदलने की चर्चा चल पड़ी है और वह बी सिर्फ इसलिए क्योंकि विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया हो गया है।
तो इसकी शुरुआत सबसे पहले प्रधानमंत्री को खुद करने की जरूरत है। संविधान में बदलाव की कहानी तो बड़ी है और जटिल भी। यह कोई मामूली बात तो है नहीं। लेकिन प्रधानमंत्री कूद की योजनाओं के नाम तो बदल ही सकते हैं। वे भी अभी प्राइम मिनिस्टर ऑफ़ इंडिया हैं। सबसे पहले इसमें बदलाव करने की जरूरत है। सभी योजनाओं और देश के तमाम सार्वजानिक उद्यमों के नामों में लगे इंडिया को सबसे पहले हटाने की जरूरत है। देश के तमाम सरकारी संस्थाओं के नाम से इंडिया शब्द हटाने की शुरुआत होनी चाहिए। वैसे भी नाम बदलने की राजनीति बीजेपी खूब करती रही है। पिछले कुछ सालों में ही देश के कई जिलों के नाम बदले गए हैं इसलिए अब देश का नाम ही बदल जाए तो क्या फर्क पड़ता है।
अब इसकी गूंज संसद में भी सुनाई देने लगी है। संसद में भले ही मणिपुर को लेकर रार जारी है लेकिन इसी बीच उत्तराखंड के एक बीजेपी सांसद ने संसद में जो सवाल किया है वह अजूबा है। उत्तराखंड से बीजेपी के राज्यसभा सांसद नरेश बंसल ने संविधान से इंडिया शब्द हटाने की मांग की है। उनका दावा है कि यह एक औपनिवेशिक थोपा हुआ शब्द था, जिसने मूल नाम ‘इंडिया’ की जगह ले ली। बीजेपी सांसद ने कहा कि इंडिया नाम गुलामी का प्रतीक है जो आज भी हमारे देश में है और इसे तुरंत हटाया जाना चाहिए।
बीजेपी सांसद ने तर्क देते हुए कहा कि पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पीएम मोदी ने लाल किले से देश को संबोधित करते हुए गुलामी के प्रतीकों से छुटकारा पाने की अपील की थी। बंसल ने कहा कि पिछले 9 सालों में मोदी सरकार कई मौकों पर औपनिवेशिक विरासत, औपनिवेशिक प्रतीकों को हटाने की अपील कर चुकी है। साथ ही भारतीय प्रतीकों, मूल्यों, सोच को उनके स्थान पर लागू करने की वकालत की गई है। उत्तराखंड सांसद ने कहा कि क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत और कड़ी मेहनत के बाद जब देश आजाद हुआ तो 1950 में संविधान बनाया गया. संविधान में लिखा गया कि इंडिया दैट इज भारत। बंसल ने कहा कि देश का नाम प्राचीन काल से भारत ही है और इसे इसी नाम से पुकारा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आजादी के स्वर्ण युग में औपनिवेशिक विरासत को हटाना होगा।
बता दें कि बीजेपी के कई नेता पहले ही इसे भारत-भारत का टकराव बता चुके हैं। बंसल से पहले बीजेपी के वरिष्ठ नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी 2024 के लोकसभा चुनाव को भारत और भारत के बीच मुकाबला बताया था।
क्या इंडिया गठबंधन से ही बीजेपी घबरा गई है ? अब तो संविधान से ही इंडिया शब्द हटाने की मांग हो गई ?
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