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छोटे दलों को जुटाने से एनडीए या इंडिया को क्या होगा नफा नुकसान

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बीरेंद्र कुमार झा

बेंगलुरु की बैठक में विपक्षी दलों ने 26 विपक्षी दलों की बैठक की, तो वहीं दिल्ली में एनडीए ने उससे भी ज्यादा 38 दलों को एकजुट कर अपना शक्ति का प्रदर्शन किया है।लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या दोनों राजनीतिक गठबंधन में छोटे दलों को महज ताकत दिखाने के लिए जुटाया जा रहा है या फिर वास्तव में चुनाव में भी इससे उन्हें कोई फायदा होने वाला है।यह प्रश्न इसलिए उठ रहा है क्योंकि दोनों खेमे में साथ खड़े दिख रहे कई छोटे दल ऐसे हैं जिनका विधानसभा और लोकसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।

छोटे दलों के पास कुल मिला कर अच्छा खासा होता है मत प्रतिसत

पिछले 2 लोकसभा चुनाव के नतीजे पर नजर डालें तो बीजेपी को शानदार बहुमत मिलने के बावजूद 10- 12 % मत छोटे दलों को हासिल हुए हैं, जिनकी आमतौर पर राष्ट्रीय स्तर पर कोई पहचान नहीं है। अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनाव में छोटे दलों का मत प्रतिशत कहीं ज्यादा है। महाराष्ट्र में पिछले चुनाव में यह मत प्रतिशत 18 फ़ीसदी तक दर्ज किया गया था,जो एनसीपी के 16% के हिस्सेदारी से भी ज्यादा है ।इसलिए छोटे दलों के पास एक बड़ा मत प्रतिशत मौजूद है।

2019 के लोकसभा चुनावों में ऐसे 65 दल थे जिन्हें 0.10% से अधिक लेकिन 1% से कम मत मिले लेकिन इनमें से 19 दल ही सीटें जीत पाए। 13 दलों ने एक-एक सीट, 4 दलों ने 2- 2 ,एक दल ने 3 तथा एक दल ने 6 सीटें जीती।इस प्रकार कुल 30 सीटें छोटे दोनों की झोली में आई।छोटे दल आमतौर पर जाति समूहों वर्गों या क्षेत्रीयता के आधार पर बने हैं तथा संबंधित समूह तथा क्षेत्रों में इनका सीमित प्रभाव रहता है। यह इतना सीमित होता है कि अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने से इनके जीतने की संभावना बेहद छीन होती है। जब भी अकेले अपने दम पर ये मैदान में आए तो उन्हें खास सफलता नहीं मिली, लेकिन जब वह किसी राष्ट्रीय दल के साथ मैदान में उतरते हैं तो इससे फायदा होता है। जैसे जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा हम ने बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में एनडीए के साथ मिलकर 7 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 सीटें जीती जबकि अकेले मैदान में उतरने वाले लोक जन शक्ति पार्टी को 1 सीट ही मिल पाया।परंपरागत रूप से राज्य में हम का 3% और एलजेपी का करीब 8% मत माना जाता है।

गठबंधन में छोटे दलों को फायदा

बड़े दलों के साथ गठबंधन में छोटे दलों को ज्यादा फायदा होता है।उन्हें खुद को खड़ा करने का अवसर मिल जाता है, जिसे वह अब समझने लगे हैं। जाति या वर्ग समूह पर बने इन दलों का मत प्रतिशत कुछ स्थानों पर ज्यादा होता है तथा कुछ स्थानों पर कम।ऐसे में जहां वह खुद चुनाव नहीं लगते हैं, वहां गठबंधन में शामिल बड़े दलों को मदद पहुंचाते हैं।यहां बड़े दलों को कुछ हद तक छोटे दल का फायदा मिलता है। कभी-कभी माहौल बनाने में यह निर्णायक भूमिका निभाता है ।लेकिन बड़े दलों को इससे भी ज्यादा फायदा यह है कि छोटे दलों की सीटों का संख्या बल एन वक्त पर सरकार बनाने में उनके लिए मददगार साबित होता है।

बड़े दलों के लिए नफा नुकसान

महाराष्ट्र में छोटे दलों के सबसे ज्यादा 18% मत हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भी 8 छोटे दलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। छोटे दलों की भूमिका किस प्रकार बड़े दलों को नफा नुकसान का कार्य करती है,उसका बेहतरीन उदाहरण प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाडी कर दिया जाता है।इसमें पिछले चुनाव में एमआईएम के साथ गठबंधन कर औरंगाबाद की सीट पर उसके उम्मीदवार को जिताया,लेकिन इस क्षेत्र की 3 सीटों पर गठबंधन के कारण महा विकास आघाडी को हार का सामना करना पड़ा।

 

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