विकास कुमार
महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी आलाकमान ने गजब की तोड़फोड़ मचाई है। पहले बीजेपी ने अपने पावर का इस्तेमाल कर शिवसेना को तोड़ा। इसके बाद अजित पवार की नाराजगी का फायदा उठाकर एनसीपी को भी दो फाड़ कर दिया। ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि अजित पवार और एकनाथ शिंदे का साथ लाने से बीजेपी को फ़ायदा होगा या नुक़सान।
महाराष्ट्र के मौजूदा विधानसभा में एक सौ पांच विधायकों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है। लेकिन सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी उसे मुख्यमंत्री का पद 40 विधायकों वाली शिंदे गुट को देना पड़ा। एक साल बाद जब लगा कि मंत्रिमंडल विस्तार में बीजेपी के कई चेहरों को शामिल किया जाएगा। तभी अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी गठबंधन में शामिल हो गई, और उनके नौ विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिला दी गई। इससे शिंदे गुट वाली शिवसेना के चार और बीजेपी के पांच मंत्री के पद एनसीपी के खाते में चले गए। कई अहम मंत्रालय अजित पवार के गुट को सौंप दिया गया है। ऐसे में बीजेपी विधायकों को सत्ता में अपना पूरा हिस्सा नहीं मिल रहा है, और इस बात को लेकर उनकी नाराज़गी लगातार बढ़ रही है। उपमुख्यमंत्री अजित पवार को वित्त मंत्रालय सौंपा गया। इसके अलावा सहकारिता, नागरिक आपूर्ति, चिकित्सा,शिक्षा, महिला एवं बाल विकास जैसे विभाग भी बीजेपी से लेकर एनसीपी को दिया गया। ऐसे में अंदरखाने बीजेपी के विधायकों में नाराजगी का माहौल है। लेकिन आलाकमान के डर से सबने चुपी साध रखी है। वहीं देवेंद्र फडणवीस ने इन विधायकों के साथ बैठक कर, उनकी नाराज़गी को दूर करने की कोशिश की है। बीजेपी के कई विधायक निराश हैं, लेकिन मुंह बंद रखने के अलावा उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
सीएम एकनाथ शिंदे गुट के कई विधायक मंत्री पद की उम्मीद लगाए बैठे थे। इस बीच अजित पवार ने बीजेपी से हाथ मिला लिया। इससे शिंदे गुट के विधायकों की उम्मीद को बड़ा धक्का लगा है। हिंगोली विधायक संतोष बांगर के बयान से शिंदे गुट की हताशा का पता चलता है। बंगर ने कहा कि जिस तरह से हमसे वादा किया गया था, वो वादा पूरा किया जाएगा।
अजित पवार के सत्ता में शामिल होने से बीजेपी के हाथ से भ्रष्टाचार का मुद्दा भी फिसल गया है। साथ ही हिंदुत्व की राजनीति की धार भी मंद हो गई है। वहीं आम जनता में शरद पवार और उद्धव ठाकरे के लिए सहानुभूति बढ़ती जा रही है। ऐसे में अजित पवार और एकनाथ शिंदे पर दांव लगाने की बीजेपी की रणनीति चुनाव में कितनी काम आएगी। ये तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा।