अखिलेश अखिल
वैसे तो दिल्ली में पिछले चार दिन से यमुना नदी में आई बाढ़ की तबाही की खबरे ही चल रही है लेकिन राजधानी में एक नई राजनीतिक विसात भी बिछ रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती लखनऊ से दिल्ली आ गई है और कहा जा रहा है कि वह कुछ दिनों तक दिल्ली में रहकर आगामी राजनीति के बारे में कई लोगों से चर्चा करेंगी। जानकारी के मुताबिक मायावती सबसे पहले अपनी पार्टी संगठन को मजबूत करने में जुटी है और दिल्ली प्रवास के जरिये वह दिल्ली ,हरियाणा ,पंजाब ,पश्चमी उत्तर प्रदेश ,राजस्थान की राजनीति को साधने की तैयारी कर रही है। बड़े स्तर पर इन प्रदेश के नेताओं से वे मिल रही है और खासकर संगठन से युवाओं को जोड़ने पर ज्यादा बल दे रही हैं।
मायावती का फोकस दो मुद्दों पर है। पहली बात तो यह है कि पार्टी के साथ ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ा जाए। हालांकि यही काम वह लखनऊ में रहकर भी कर रही थी लेकिन सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक लाख कोशिश करने के बाद भी युवा बसपा से जुड़ने से अब कतरा रहे हैं। दलित युवाओं का आकर्षण अभी भीम पार्टी की तरफ है। दूसरी बात यह है कि मायावती चाहती है कि पार्टी से मुस्लिम समाज जुड़े। लेकिन इसमें भी मायावती को कोई ख़ास उपलब्धि नहीं मिल रही है।
खबर के मुताबिक यूपी के मुसलमान पिछले चुनाव में सपा के साथ चले गए थे। जो मुस्लिम समाज सालों से बसपा के साथ जुड़े थे वे भी सपा के साथ जुड़ते चले गए। इसका लाभ पिछले चुनाव में सपा को मिला भी। हालांकि पिछले विधान सभा चुनाव में सपा सरकार बनाने से पीछे रह गई लेकिन मुसलमानो का वोट उसे काफी मिला था। लेकिन मौजूदा समय में प्रदेश के मुसलमान अब सपा से भी दूर होते जा रहे हैं। यूपी के मुसलमानो में अब कांग्रेस के परैत आकर्षण ज्यादा बढ़ा है। उसे लग रहा है कि जो पार्टी बीजेपी को चुनौती दे वह उसके साथ ही जायेंगे। पिछले चुनाव में मुसलमानो को लगा था कि सपा ,बीजेपी को चुनौती दे सकती है इसलिए मुस्लिम वोटर सपा के साथ जुड़े थे। लेकिन फिलहाल स्थिति बदलती दिख रही है।
उधर जब से बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानो का कार्ड खेला है तभी से बीजेपी के प्रति पसमांदा मुसलमानो का भी आकर्षण बढ़ा है। कहा जा रहा है कि यूपी के साथ ही कई प्रदेश के पसमांदा मुस्लमान बड़ी संख्या में बीजेपी के साथ जुड़ रहे हैं। इस स्थिति की वजह से भी बसपा का मुस्लिम वोट बैंक काम होता जा रहा है और कहा जा रहा है कि आगे के लिए मुसलमानो की पसंद कांग्रेस ,सपा और बीजेपी हो गई है। ऐसी हालत में बसपा के लिए कोई बड़ा वोट बैंक बनता दिख नहीं रहा।
इन तमाम बातो के बाद भी बसपा की पहुँच आज भी कई राज्यों में है और वह लगातार कई राज्यों में कुछ सीटों पर चुनाव भी जीतती रही है। पंजाब और राजस्थान के साथ ही उत्तराखंड में बसपा की अच्छी पकड़ है .मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी बसपा की पहुँच है। लेकिन जो राजनीतिक स्थिति बानी हुई है उसमे बसपा का विस्तार अभी दिख नहीं रहा है। ऐसे में बसपा के रणनीतिकार कांग्रेस से गठबंधन करने की तैयारी भी कर रहे हैं। सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि विपक्षी एकता की बैठक से पहले कांग्रेस और बसपा के बीच को सफल बातचीत भी हो। कांग्रेस के भी कुछ नेता यूपी की राजनीति के साथ ही मध्यप्रदेश और राजस्थान को साधने के लिए बसपा की जरूरत महसूस कर रहे हैं। लेकिन अभी देखना होगा कि बसपा और कांग्रेस के बीच किस तरह की बातचीत होती है और किन मुद्दों पर दोनों पार्टियों में तालमेल संभव हो पाता है।