Homeदेशउत्तरप्रदेश में मायावती और कांग्रेस के बीच गठबंधन की सम्भावना बढ़ी !

उत्तरप्रदेश में मायावती और कांग्रेस के बीच गठबंधन की सम्भावना बढ़ी !

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अखिलेश अखिल

12 जुलाई को शिमला की बैठक में कितनी पार्टियां और कितने नेता शामिल होते हैं यह भी अब विषय बना हुआ है। पटना की बैठक में 17 पार्टियां शामिल हुई थी और करीब 32 बड़े नेता शिरकत किये थे। सबने खुले मन से विपक्षी एकता की बात की और मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान भी किया। हालांकि बैठक के तुरंत बाद केजरीवाल अध्यादेश पर नाराज हुए और प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं हुए। वे दिल्ली के लिए निकल गए। नीतीश कुमार से जब पूछ गया तो तो उन्होंने यही कहा कि हम सब एक हैं और केजरीवाल को दिल्ली पहुंचना जरुरी था इसलिए वे .लेकिन ममला इतना भर ही नहीं था।
दरअसल केजरीवाल बैठक में ही कांग्रेस से यह आश्वासन चाह रहे थे कि कांग्रेस अभी ही उन्हें यह आशवासन दे दे कि संसद में अध्यादेश पर वह आप का साथ देंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कांग्रेस ने यह जरूर कहा कि यह सब सदन का मामला है और जब हम साथ है तो सदन में इस पर विचार किया जायेगा। लेकिन केजरीवाल की हरकत का सभी ने विरोध ही किया। आगे क्या होगा यह कौन।
ीदार बैठक के दूसरे दिन ही ममता बनर्जी के रंग बदल गए। उन्होंने साफ़ कर दिया है कि बंगाल में वह किसी के साथ गठबंधन नहीं करेंगी। यानी कांग्रेस और माकपा को कोई सीट नहीं देगी। इन दलों पर ममता ने कई और तरह के आरोप भी लगाए। बंगाल में पंचायत चुनाव है और ममता और कांग्रेस के बीच जुबानी जंग जारी है। खेल कुछ और भी हो सकता है। इसकी सम्भावना बताई जा रही है।
उधर पटना की बैठक में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि ये लड़ाई विचारधारा की है। भारत की नींव पर आक्रमण किया गया है। जबकि, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती का ये कहना था कि लोकतंत्र और संविधान पर हमला हो रहा है। जो कश्मीर में हुआ, वही पूरे देश में हो रहा है। तो वहीं, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने संयुक्त बयान के दौरान कहा कि आपसी मतभेद छोड़कर साथ चलेंगे। 2024 चुनाव में हम मिलकर लड़ेंगे।
इन सब कवायद और विपक्ष की बड़ी एकता बैठक के इतर ये लगातार सवाल उठ रहा है कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती आखिर कहां हैं और लोकसभा चुनाव को लेकर उनका क्या रुख रहने वाला है? पटना में 23 जून को विपक्ष की बैठक से ठीक दो दिन पहले मायावती ने प्रदेश, मंडल और सभी जिला के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ बैठक की। इस बैठक की सबसे खास बात ये रही कि इस दौरान उन्होंने बीजेपी और समाजवादी पार्टी के खिलाफ तो जोरदार हल्ला बोला लेकिन कांग्रेस के खिलाफ चुप रहीं। ऐसा काफी लंबे समय के बाद देखने को मिला जब वे कांग्रेस और कांग्रेस शासित राज्यों पर ऐसे मौन दिखीं।
बीएसपी सुप्रीमो ने कहा कि केन्द्र सरकार के कार्यकलाप के चलते तेजी से बदलते राजनीतिक हालात और उनसे निपटने के लिए विपक्षी दलों की गतविधियों पर पार्टी की गहरी नजर है। उन्होंने कहा कि कमियों से ध्यान हटाने के लिए बीजेपी सरकार ध्यान बंटाने के लिए साम्प्रदायिक और जातिवादी विवादों को शह देने की कोशिश कर रही है।
दरअसल, भले ही मायावती ने विपक्षी एकता को लेकर पटना में हुई बैठक से खुद को दूर रखा हो और उन्हें उस बैठक के लिए न्यौता भी न दिया गया हो, लेकिन देश में तेजी से बदलते राजनीतिक हालात और सियासी जमीन को बचाए रखने की कवायद में बीएसपी सुप्रीमो एकला चलो के अपने स्टैंड को छोड़कर गठबंधन के साथ आ सकती हैं। जानकारों का कहना है कि विपक्षी एकता के लिए मुख्य रुप से बिहार और उत्तर प्रदेश के चार दलों की बड़ी भूमिका होगी। ये हैं नीतीश कुमार, आरजेडी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी। देर सबेर मायावती भी एकता के साथ आएँगी। इसके पीछे का सच यही है कि न कोई दल दूध का धुला हुआ है और न ही कोई अकेले चुनाव लड़ने को तैयार है। सबके वोट बैंक ख़राब हो रहे हैं और कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है जो कह सके कि वह अकेले चुनाव जीत सकते हैं।
ऐसे में ये हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर बीएसपी और कांग्रेस का तालमेल हो जाए। कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस इस बात से निश्चिंत है कि जो वोटर उससे कट गए थे, वो उनके पास वापस आ गए हैं। जबकि मायावती यूपी में कई बार मुस्लिम वोटों पर दांव लगा चुकी हैं, कभी सफलता मिली तो कभी नहीं मिली है। ऐसे में यदि कांग्रेस और बीएसपी के बीच 2024 लोकसभा चुनाव में समझौता होता है इसका उन्हें राजनीतिक फायदा मिल सकता है, और इसका नुकसान समाजवादी पार्टी को नुकसान हो सकता है। सपा मुस्लिम और यादव वोट पर आश्रित है और अपने वोटर को बनाए रखना चाहेगी।
सच यही है कि फिलहाल विपक्षी एकता की सूरत में चाहे अखिलेश हों या फिर ममता हों, वो ये चाहते हैं कि कांग्रेस 200-250 सीटों पर ही चुनाव लड़े। कांग्रेस की कीमत पर विपक्षी एकता चाह रहे हैं, यानी कर्नाटक और अधिक कुर्बानी दे। जबकि कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस शायद ही ऐसा करेगी।
उधर ,अखिलेश भी ममता बनर्जी की तर्ज पर सोच रहे हैं। जैसे मामता बनर्जी ये सोच रही है कि बंगाल में कांग्रेस कमजोर है इसलिए वे यहां पर अपनी जमीन मजबूत करने की न सोचे, वही स्थिति अखिलेश यादव कांग्रेस के सामने रख रहे हैं, कि हम यूपी में आपके साथ हैं, लेकिन हमें डिस्टर्ब मत करिए। मायावती के कमजोर होने की एक बड़ी वजह यही है कि मुस्लिम वोट का बीएसपी से छिटक कर एसपी के पास चले जाना। जबकि दलित वोट और ओबीसी वोट एक हद तक बीजेपी के पास खिसक जाना। इसलिए, बीएसपी को भी ये जरूरत है कि एक ऐसा साझीदारी दल मिले, जिससे सबसे मजबूत गढ़ यूपी में अपनी शर्तों के साथ समझौता कर पाएं।
कांग्रेस के पास आज उत्तर प्रदेश में खोने के लिए कुछ भी नहीं है। ऐसे में कांग्रेस बीएसपी की शर्तों को मान सकती है, अगर उसके सहारे उसे 2-3 लोकसभा सीटें मिल जाए। हालात ये हैं कि फिलहाल कांग्रेस को रायबरेली सीट बचाना भी मुश्लिल हैं, अमेठी तो वो पहले ही हार चुकी है।

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