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छावला गैंगरेप केस: उत्तराखंड के CM धामी बोले- बेटी को न्याय दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे

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देहरादून: दिल्ली में दरिंदगी के बाद मौत के घाट उतार दी गयी पहाड़ की बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए उत्तराखंड सरकार प्रयास करेगी। बीते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म और हत्या के तीनों आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया था। इससे पहले लोअर कोर्ट व हाईकोर्ट तीनों आरोपियों को फांसी की सजा देने के आदेश दे चुके थे।

मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू से बातचीत की। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की पैरवी को तैनात अधिवक्ता चारू खन्ना से भी बात की। मुख्यमंत्री ने कहा कि पीड़ित बिटिया हमारे प्रदेश की,देश की बेटी है। उसको न्याय दिलाने को हर संभव प्रयास किया जाएगा।

क्या है मामला?

पौड़ी के नेनीडांडा ब्लॉक का एक परिवार दक्षिण पश्चिम दिल्ली के द्वारका में रहता है। इस परिवार की बेटी परिवार की आर्थिक सहायता के लिए एक कंपनी में डाटा एंट्री आपरेटर के रूप में काम करती थी। 9 फरवरी 2012 को जब वो अपने काम से घर लौट रही थी तो तीनों आरोपियों ने उसका अपहरण कर लिया। आरोपियों ने उसके साथ गैंगरेप और दरिंदगी करने के बाद हरियाणा में एक खेत में फेंक दिया। जहां उसकी मौत हो गयी।

राष्ट्रपति से मिलेंगे प्रवासी उत्तराखंडी

दिल्ली में प्रवासी उत्तराखंडियों के संगठन उत्तराखंड लोक मंच के अध्यक्ष बृजमोहन उप्रेती ने बताया कि हत्यारों को सजा होने तक मंच अपना संघर्ष जारी रखेगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू याचिका दाखिल करने और राष्ट्रपति से मुलाकात पर भी विचार किया जा रहा है। जल्द ही बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए आंदोलन और कार्रवाई की रणनीति तय की जाएगी।

पुलिस की पांच खामियों ने पलटा फांसी का तख्त

छावला गैंगरेप और हत्याकांड में हाईकोर्ट के निर्णय को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हर पहलू पर पुलिस जांच पर गंभीर सवाल उठाते हुए अहम निर्णय सुनाया। अदालत ने पाया कि आपत्तिजनक वस्तुओं की बरामदगी, इंडिका कार की पहचान, नमूनों का संग्रह, चिकित्सा और वैज्ञानिक साक्ष्य,डीएनए प्रोफाइलिंग की रिपोर्ट,मोबाइल फोन की सीडीआर के संबंध में साक्ष्य आदि को अभियोजन पक्ष साबित नहीं कर सका। सजा सुनाए गये तीनों आरोपियों को बरी करने के संबंध में सोमवार को सुनाए गये निर्णय की प्रति मंगलवार को उपलब्ध हुई।
ये हैं पुलिस की पांच खामियां

राहुल की गिरफ्तारी पर सवाल

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष का दूसरा अहम तथ्य 13 फरवरी 2012 को राहुल की गिरफ्तारी है। अभियोजन पक्ष के अनुसार 13 फरवरी को एएसआई राजिंद्र सिंह ने राहुल को पेश किया और बताया कि उसने राहुल को द्वारका सेक्टर नौ मेट्रो स्टेशन के पास लाल रंग की टाटा इंडिका कार के पास टहलते हुए पकड़ा था। हालांकि अदालत में अपने बयान में राजिंद्र सिंह ने कहा था कि उसने कार चलाते हुए राहुल को देखा था, जो​ कि थोड़ा परेशान दिख रहा था। पूछताछ में कार के दस्तावेज नहीं दिखाने पर उन्होंने उसे पकड़कर छावला थाना पुलिस को सौंप दिया। ज​बकि,अभियोजन के गवाहों में से किसी ने भी घटना में इस्तेमाल की गई इंडिका कार की पहचान नहीं की थी। शिकायतकर्ता सरस्वती ने भी अपनी जिरह में कहा था कि वह निश्चित रूप से यह नहीं कह सकती थी कि यह वही कार थी,जिसमें पीड़िता का अपहरण किया गया था। किसी भी गवाह ने कार का नंबर नहीं देखा था।

स्पष्ट नहीं है कि शव की सबसे पहले पहचान किसने की

अदालत ने कहा कि अहम तथ्य यह भी है कि पीड़िता का शव जहां था, वहां पर सबसे पहले कौन पहुंचा। इस संबंध में साक्ष्य भी स्पष्ट नहीं है। हरियाणा के रोदाई थाना के एएसआई बलवान सिंह ने कहा कि 13 फरवरी 2012 को सूचना मिलने पर वह हवलदार विनोद और अमन कुमार के साथ रेवाड़ी स्थित करावारा रेलवे फाटक के पास खेतों में पहुंचे थे। जहां पर उन्होंने छावला थाने के एसएचओ संदीप गुप्ता और अन्य स्टाफ को पाया था। बलवान सिंह ने अपनी जिरह में कहा कि वह लगभग 4.30 बजे मौके पर पहुंचे थे। एसएचओ संदीप गुप्ता ने कहा था कि तीनों अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद अभियुक्त राहुल को थाने में छोड़कर रवि व विनोद को लकर रेवाड़ी के रोदाई थाने पहुंचे और वहां पर रवि व विनोद की निशानदेही पर घटनास्थल पर पहुंचे । जहां पर रोदाई थाना पुलिस की पीसीआर पार्क थीं पीसीआर से भेजी गई सूचना पर बलवान सिंह अपने स्टाफ के साथ मौके पर हुंचे थे। दोनों के बयानमें विरोधाभास होने से यह स्पष्ट नहीं है कि कैसे और कोन उस जगह पर पहुंचा था, जहां पर पीड़िता का शव पड़ा था।

मृतिका के शरीर से बरामद बाल सबसे संदिग्ध

अदालत ने कहा कि मृतिका के शरीर से एक बाल बाल बरामद होना भी अत्यधिक संदिग्ध है, क्योंकि शव लगभग तीन दिन और तीन रात के लिए खुले मैदान में पड़ा रहा। मृतिका के पिता और पड़ोसियों ने शव की पहचान की थी और उन्होंने अपने बयान में शव के पास पड़ी वस्तुओं के बारे मं कुछ नहीं बताया था। जली हुई राख, कपड़े आदि की जब्ती भी अभियोजन पक्ष ने विधिवत साबित नहीं की थी। इस साक्ष्यों को सीएफएसएल को जांच के लिए भेजा गया था, लेकिन सीएफएसएल ने आरोपितों के साथ इसका संबंध स्थापित करने के लिए कोई निर्णायक राय नहीं दी थी।

सिद्ध नहीं हुई डीएनए प्रोफाइलिंग

अदालत नेयह भी कि फोरेंसिक साक्ष्य यानी डीएनए प्रोफाइलिंग पर 18 अप्रैल 2012 को दी गई रिपोर्ट में भी आपत्तिजनक निष्कर्ष दिय हैं जांच के लिए भेजे गये नमूनों का संग्रह बहुत ही संदिग्ध था। फोरेंसिक साक्ष्य बैज्ञानिक और कानूनी रूप से सिद्ध नहीं थे।

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