अखिलेश अखिल
राजनीति करने की हालांकि को सीमा नहीं होती और न ही कोई उम्र का तकाजा। जब तक शरीर थके नहीं और जनता आप से ऊबे नहीं राजनीति की बिसात बिछा सकते हैं। लेकिन जब राजनीति भी एक व्यापार हो चला हो तो फिर कई प्रतिबंध की जरूरत दिखने लगती है। मसलन जो लोग लम्बे समय से झंडा डंडा धो रहे हैं और कमाने का मौका पाए बगैर अपना सब कुछ गवा दिया, उसे भी तो मौका मिलनी चाहिए। 2014 में नरेंद्र दामोदर दास मोदी जब देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपनी पार्टी बीजेपी के लिए एक फार्मूला निकाला। उन्होंने कहा कि 75 की उम्र के बाद राजनीति नहीं करनी चाहिए। वे आराम करें। पार्टी को सलाह दें और जहा जरूरत हो वहां पार्टी के लिए वोट भी उगाहें .लेकिन चुनाव नहीं लड़े। इसका पहला प्रयोग आडवाणी जी पर ही किया गया। जोशी पर किया गया। या यह कह सकते हैं कि जिन नेताओं ने बीजेपी को तैयार करने में अपनी पूरी जवानी लगा दी उन्हें टिकट से वंचित कर दिया गया। उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया गया। ऊपर से देखने में यह बेहतर काम है। लेकिन कुछ लोगों के लिए यह घोड़े पर लगाम लगाने की तरह ही है। खैर देखना होगा कि पीएम मोदी जी भी तीन साल बाद 75 के हो जायेंगे। अगर इस बार के चुनाव वे जित गए तो उन्हें बह समय से पूर्व ही पद से हटना पड़ सकता है। क्योंकि नियम तो सबके लिए है !
खैर ये सब दर्शन की बात है। इस बार की खबर ये है कि बीजेपी कई सांसदों को टिकट नहीं देगी। इन सांसदों में कई चर्चित नाम हैं। इन नामों में राजनाथ सिंह भी है तो हेमा मालिनी भी। जगदम्बिका पाल हैं तो रीता बहुगुणा भी। इसके अलावे भी कई चर्चित चेहरे हैं। जिनके नाम बीजेपी दफ्तर में लिए जा रहे हैं उनके समर्थकों के चेहरे उतर जाते हैं। नाराजगी बह होती है लेकिन नाराजगी किस पर ?
जिन नेताओं को इस बार टिकट नहीं मिलने की बात कही जा रही है ऐसे करीब दो दर्जन सांसद हैं। ये सभी 75 की उम्र सीमा पार चुके हैं या फिर पार करने वाले हैं। फिर इन कई ऐसे लोग भी जिन्हे जनता पसंद अब नहीं कर रही। पार्टी के नाम पर भगत लोग इन्हे वोट तो दे देते हैं लेकिन पार्टी के कार्यकर्त्ता ही इन्हे पसंद नहीं करते। तो ऐसे लोगों की सूची अब बीजेपी हाई कमान तैयार कर रही है।इतना ही नहीं कई सांसद विवादों से घिरे रहने के कारण अपने टिकट को लेकर असमंजस में हैं।
देवरिया-बलिया जिले को जोडक़र बने सलेमपुर संसदीय सीट पर रविंद्र कुशवाहा टिकट की दौड़ से बाहर होने वाले हैं। दो बार से भाजपा के टिकट पर सांसद रहे कुशवाहा को लेकर क्षेत्र में काफी नाराजगी है। इसके अलावा स्थानीय निकाय चुनाव में भी अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर इन्होंने ऐसे व्यक्ति को टिकट दिलवाया जो जीती हुई भाजपा की सीट को गंवा बैठा। कानपुर के सांसद सत्यदेव पचौरी उम्र सीमा को पार कर चुके हैं और टिकट की रेस से बाहर हैं। वे घबरा रहे हैं। अब क्या करेंगे ? इसी तरह बरेली के सात बार लगातार सांसद रहे संतोष गंगवार को भी सम्मान पूर्वक संरक्षक मंडल का रास्ता दिखाया जा सकता है। इसी तरह मथुरा से दो बार सांसद रही फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी को भी तीसरी बार मौका नहीं मिलेगा। उम्र सीमा के दायरे में होने के कारण अब उनकी सेवाएं पार्टी संगठन के लिए ली सकती हैं। प्रयागराज से सांसद पूर्व केंद्रीय मंत्री रीता बहुगुणा जोशी के बारे में कहा जा रहा है कि वह चुनाव नहीं लड़ेगी और राजनीति से संन्यास ले सकती है। इसके अलावा उम्र सीमा के फार्मूले में उनका भी टिकट फंसता दिखाई दे रहा है। इसके अलावा डुमरियागंज से सांसद और एक दिन के मुख्यमंत्री रहे जगदम्बिका पाल, फिरोजाबाद के सांसद चंद्रसेन जादौन और मेरठ के सांसद राजेंद्र अग्रवाल शामिल है।
कैसरगंज से सांसद बृजभूषण शरण सिंह अपने राजनीतिक जीवन के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं तो वहीं अपने ट्वीट और सोशल मीडिया पर दिए गए बयानों के कारण भाजपा के लिए असहज स्थिति पैदा करने वाले पीलीभीत सांसद वरुण गांधी के टिकट पर भी संदेह बना हुआ है।
बृजभूषण शरण सिंह से पार्टी अगले लोकसभा में किनारा कर सकती है तो वरुण गांधी को संगठन में समायोजित किया जा सकता है। इसी तरह लखनऊ से सांसद और रक्षा मंत्री अब पार्टी की निर्धारित उम्र सीमा को पार कर रहे हैं ऐसे में उनके टिकट पर भी ऊहापोह की स्थिति है।