Homeदेशदेश के करोड़ों युवा अर्थव्यवस्था पर बोझ !

देश के करोड़ों युवा अर्थव्यवस्था पर बोझ !

Published on


अखिलेश अखिल 

इस खबर का जो शीर्षक चस्पा किया गया है वह भला किसे अच्छा लगेगा ! कोई देश भला अपने युवाओं को बोझ कैसे मान सकता है ? कोई माँ बाप अपनी औलाद को कभी बोझ समझता है क्या ? माता -पिता तो मरते दम तक अपनी औलाद को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं और ईश्वर से यही मनाते रहते हैं कि उनकी औलाद अच्छी राह पर चले ,अपने पैरों पर खड़ा हो जाए और बुढ़ापे का सहारा बने। भारत का संस्कार यही है। जाहिर है किसी भी देश का भी यही संस्कार होगा। बच्चे पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़े होने के बाद ही घर के बुजुर्गों को शांति मिलती है। भारत जैसे कल्याणकारी राज्य में भी सरकार भी शायद इसी लिए बनती है कि युवाओं को आगे बढाकर देश को आगे बढ़ाया जा सकता है। देश की अधिकतर योजनाए भी युवाओं के लिए ही बनती दिखती है लेकिन उन तमाम योजनाओं के बाद भी देश के युवा खुद को देश पर बोझ मानने लगे तो इसे आप कहेंगे ? ऐसे में एक सवाल आता है कि क्या सचमुच देश के करोडो युवा देश के लिए बोझ बन गए हैं ?                
कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में शहरी बेरोजगारी दर अप्रैल से जून 2020 की तिमाही में 20.9 फीसदी पर पहुंच गई थी। तब से बेरोजगारी दर तो कम हुई है लेकिन नौकरियां कम ही उपलब्ध हैं।  अर्थशास्त्री कहते हैं कि नौकरी खोजने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। खासकर युवा आबादी कम वेतन वाला कच्चा काम खोज रहे हैं या फिर अपना कोई छोटा-मोटा काम कर रहे हैं जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यह हालात तब हैं जबकि देश की विकास दर दुनिया में सबसे ज्यादा 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया जा रहा है। भारत सरकार कहती है कि मौजूदा समय में देश का जीडीपी सात फीसदी से ज्यादा है और दुनिया के कई देशों से बेहतर हालत में है भारत। तो जब जीडीपी दुनिया के कई देशों से आगे है तो युवा भटक क्यों रहे हैं ? बेरोजगारी से युवा हांफ क्यों रहे हैं ? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। सरकार और सरकार से जुड़े लोग इस कहानी को जानते हैं कि देश में बेरोजगारी चरम पर है और यही देश की विकत समस्या है। लेकिन सरकार के पास कोई चारा भी तो नहीं है। यही वजह है कि देश के युवा बेरोजगारी के मसले पर सड़क पर नहीं उतरे इसलिए विदेशों में भारत को मिल रहे कथित सम्मान की गाथा प्रचार तंत्रों के जरिये बार -बार दोहराई जाती है। इसके अलावा सरकार के पास कोई तंत्र  भी तो नहीं।            
   लगभग 1.4 अरब लोगों की आबादी के साथ भारत चीन को पीछे छोड़ दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है।  इस आबादी का आधे से ज्यादा यानी लगभग 53 फीसदी 30 साल से कम आयु के हैं। भारत के इस जनसंख्या-लाभ की चर्चा सालों से हो रहे हैं लेकिन नौकरियां ना होने के कारण करोड़ों युवा अर्थव्यवस्था पर बोझ बनते जा रहे हैं। यह बोझ इतना विकत है कि जिसे समय रहते नहीं सुलझाया गया तो देश किस राह पर जाएगा ,कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। युवाओं में अब यह भावना भी घर करने लगी है कि राजनीति जैसी गिरोह मंडली में घुसकर जब कोई अदना सा आदमी देश को हांकने लगता है ,पढ़े लिखों पर शासन करता है तो फिर पढ़ने से भी क्या लाभ ? जब गुंडे और अपराधी ही संसद से विधान सभाओं में बैठकर ज्ञान बाँटने का काम करता है तो इंसान बनने से क्या लाभ ? ऐसे ही बहुत सारे सवाल युवाओं के मन में उठ रहे हैं। उधर पांच किलो अनाज और कुछ नाम के बेकारी भत्ते देकर कोई भी सरकार भले ही तत्काल चुनाव जीत ले लेकिन इस खेल को वह युवा भी जनता है कि देश के साथ क्या कुछ किया जा रहा है ? 
                 आर्थिक शोध एजेंसी आईसीआरआईईआर में फेलो राधिका कपूर कहती हैं, “बेरोजगारी तो समस्या का चेहरा मात्र है. जो उस चेहरे के पीछे छिपा है, वह अंडर एंप्लॉयमेंट और अपरोक्ष बेरोजगारी का विशाल संकट है। ” भारत एक दुष्चक्र में फंसने का खतरा झेल रहा है। अगर रोजगार दर कम होती रही तो आय कम होगी और आय कम हुई तो युवाओं और बढ़ती आबादी के लिए नये रोजगार पैदा करने के लिए धन उपलब्ध नहीं होगा। 
            अर्थशास्त्री जयति घोष कहती हैं कि देश का जनसंख्या-लाभ एक सुलगती हुई चिंगारी है। वह कहती हैं, “हमारे पास कितने सारे लोग हैं जो पढ़े लिखे हैं, जिनकी पढ़ाई के लिए उनके परिवार ने पैसा खर्च किया है लेकिन आज उनके पास नौकरी नहीं है, यह तथ्य बेहद डरावना है। यह सिर्फ अर्थव्यवस्था के संभावित नुकसान का सवाल नहीं है, यह पूरी पीढ़ी के नुकसान की बात है। ”
            भारत के शहरों में बेरोजगारी और ज्यादा कठोर है, जहां महंगाई कमरतोड़ हो चुकी है और जॉब गारंटी जैसी किसी सरकारी योजना के रूप में कोई भरोसा उपलब्ध नहीं है। फिर भी, ग्रामीण भारत से बड़ी संख्या में युवा नौकरी के लिए शहरों की ओर जा रहे हैं। जनवरी से मार्च की तिमाही में बेरोजगारी दर 6.8 फीसदी थी जबकि दिसंबर में पूर्णकालिक काम करने वाले शहरी कामगारों की संख्या घटकर 48.9 प्रतिशत रह गई थी। कोविड महामारी शुरू होने से ठीक पहले यह 50.5 फीसदी थी। 
            इसका अर्थ है कि देश की कुल काम करने लायक आबादी यानी 15 करोड़ में से सिर्फ 7.3 करोड़ लोगों के पास पूर्णकालिक काम है। शहरी क्षेत्रों में पूर्णकालिक काम करने वाले लोगों के लिए महंगाई दर के आधार पर गणना के बाद अप्रैल से जून के बीच औसत मासिक वेतन 17,507 रुपये आता है। यह अक्तूबर-दिसंबर 2019 यानी महामारी की शुरुआत से ठीक पहले के मुकाबले 1.2 फीसदी ज्यादा है। 
             मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता जयति घोष और सीपी चंद्रशेखर का शोध कहता है कि जो लोग अपना रोजगार करते हैं, उनकी औसत मासिक आय अप्रैल से जून 2022 की तिमाही के बीच गिरकर मात्र 14,762 रुपये रह गई थी। अक्तूबर-दिसंबर 2019 की तिमाही में यह 15,247 थी। 
              घोष कहती हैं, “एक बड़ी बात ये हुई है कि छोटे व्यवसाय धराशायी हो गए हैं, जो रोजगार की रीढ़ की हड्डी होते हैं। ” 2016 में भारत सरकार ने देश की 86 फीसदी करंसी नोटों को रद्दी के टुकड़ों में बदलते हुए डिमोनेटाइजेशन का ऐलान किया था। उस फैसले ने छोटे व्यापारियों पर करारी चोट की, जिसके बाद आई महामारी ने सब तहस-नहस कर दिया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2022-23 में दस हजार से ज्यादा अति लघु, लघु और मध्यम दर्जे के व्यवसाय बंद हुए। उसे बीते साल 6,000 उद्योगों पर ताला पड़ा था।लेकिन सरकार ने यह नहीं बताया कि इस दौरान नये व्यवसाय कितने खुले। 

Latest articles

सामने आई राजद की पूरी लिस्ट, राघोपुर से लड़ेंगे तेजस्वी, कुटुंबा सीट कांग्रेस के लिए छोड़ी

बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी आज अपने चरम पर है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD)...

पुराने फोन का क्या करती हैं स्मार्टफोन कंपनियां! उठ गया सीक्रेट से पर्दा

आज के डिजिटल युग में हर साल नए-नए स्मार्टफोन लॉन्च होते रहते हैं। बेहतर...

पैरों में दिखने लगें ये लक्षण तो समझ लें ब्लॉक हो रहीं आर्टरीज, तुरंत भागें डॉक्टर के पास

क्या आप जानते हैं कि हार्ट डिजीज की सबसे बड़ी वजहों में से एक...

बिहार विधानसभा चुनाव में मोकामा से सीवान तक फिर गूंजा बाहुबल

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक बार फिर पुराने चेहरे और पुरानी कहानियां लौट...

More like this

सामने आई राजद की पूरी लिस्ट, राघोपुर से लड़ेंगे तेजस्वी, कुटुंबा सीट कांग्रेस के लिए छोड़ी

बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी आज अपने चरम पर है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD)...

पुराने फोन का क्या करती हैं स्मार्टफोन कंपनियां! उठ गया सीक्रेट से पर्दा

आज के डिजिटल युग में हर साल नए-नए स्मार्टफोन लॉन्च होते रहते हैं। बेहतर...

पैरों में दिखने लगें ये लक्षण तो समझ लें ब्लॉक हो रहीं आर्टरीज, तुरंत भागें डॉक्टर के पास

क्या आप जानते हैं कि हार्ट डिजीज की सबसे बड़ी वजहों में से एक...