न्यूज डेस्क
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने एक बार संसद में ऐतिहासिक भाषण देते हुए बाजपेयी सरकार को घेरा था और कहा था कि सरकार आती है जाती है। यह आती जाती रहेंगी भी। लेकिन यह देश बचा रहेगा । उन्होंने कहा था कि मौजूदा राजनीति केवल सरकार बनाने और जीत कैसे हो इसी पर टिकी है।लेकिन इस सरकार का देश ,समाज से कोई लेना देना है । हमारी आने वाली पीढ़ी जब ऐसी सरकार का आकलन करेगी तो हमारा सिर धर्म से झुक जायेगा क्योंकि हम भी तो इसी संसद के सदस्य है और कुछ भी कर नही पर रहे हैं।
चंद्रशेखर तो आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके कहे एक एक शब्द आज की राजनीति की पोल खोलने के लिए काफी है । देश की बेटियां जिस तरह से न्याय की भीख मांगती फिर रही है और सत्ता सरकार ठहाका लगाती दिख रही है उससे लगता है अब हम किसी ऐसे देश में रह रहे हैं जहां हर कोई अंधा हो चला है । सरकार को कुछ दिखता नहीं । उसे केवल चुनावी जीत दिखती है और पुलिस को वही सब करना पड़ता है जो उसके आका कहते हैं । खिलाड़ी लड़कियों ने बृजभूषण पर यौन शोषण का आरोप लगाया तो पुलिस ने अब उन्हें ही अपराधी घोषित कर कर दिया । कई मुकदमों में फसा दिया । लोकतंत्र का यह खेल आज तक देखने को नहीं मिला था।
— Vinesh Phogat (@Phogat_Vinesh) May 30, 2023
बहरहाल ,आज देश की बेटियों ने देश के नाम मार्मिक पत्र लिखा है । आप भी उसे पढ़िए । विनेश फोगाट ने इस पत्र में यौन उत्पीड़न के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बारे में अपनी बात रखी है।
विनेश फोगाट ने अपने पत्र में लिखा कि 28 मई को जो हुआ, वह आप सबने देखा । पुलिस ने हम लोगों के साथ क्या व्यवहार किया। हमें कितनी बर्बरता के गिरफ्तार किया । हम शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे । हमारे आंदोलन की जगह को भी पुलिस ने तहस-नहस कर हमसे छीन लिया और अगले दिन गंभीर मामलों में हमारे ऊपर ही एफआईआर दर्ज कर दी गई ।
अपने तीन पन्ने के पर में उन्होंने लिखा कि यह सवाल आया कि किसे लौटाएं । हमारी राष्ट्रपति जी को, जो खुद एक महिला हैं। मन ने ना कहा, क्योंकि वो हमसे सिर्फ 2 किलोमीटर बैठी सिर्फ देखती रहीं, लेकिन कुछ भी बोली नहीं । हमारे प्रधानमंत्री को, जो हमें अपने घर की बेटियां बताते थे। मन नहीं माना, क्योंकि उन्होंने एक बार भी अपने घर की बेटियों की सुध-बुध नहीं ली । बल्कि नई संसद के उद्घाटन में हमारे उत्पीड़क को बुलाया।
विनेश फोगाट ने लिखा कि वह तेज सफेदी वाली चमकदार कपड़ों में फोटो खिंचवा रहा था। उसकी सफेदी हमें चुभ रही थी। मानो कह रही हो कि मैं ही तंत्र हूं। इस चमकदार तंत्र में हमारी जगह कहां है । भारत की बेटियों की जगह कहां है । क्या हम सिर्फ नारे बनकर या सत्ता में आने भर का एजेंडा बनकर रह गई हैं।
विनेश फोगाट ने लिखा कि कल पूरा दिन हमारी कई महिला पहलवान खेतों में छिपती फिरी हैं । तंत्र को पकड़ना उत्पीड़क को चाहिए था, लेकिन वह पीड़ित महिलाओं को उनका धरना खत्म करवाने, उन्हें तोड़ने और डराने में लगा हुआ है । अब लग रहा है कि हमारे गले में सजे इन मेडलों का कोई मतलब नहीं रह गया है । इनको लौटाने की सोचने भर से हमें मौत लग रही थी, लेकिन अपने आत्म सम्मान के साथ समझौता करके भी क्या जीना ।
उन्होंने पत्र में लिखा कि क्या महिला पहलवानों ने अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के लिए न्याय मांगकर कोई अपराध कर दिया है । पुलिस और तंत्र हमारे साथ अपराधियों जैसा व्यवहार कर रही है, जबकि उत्पीड़क खुली सभाओं में हमारे ऊपर फब्तियां कस रहा है । टीवी पर महिला पहलवानों को असहज कर देने वाली अपनी घटनाओं को कबूल करके उनको ठहाकों में तब्दील कर दे रहा है ।
महिला पहलवान विनेश फोगाट ने पत्र में दावा किया कि पॉक्सो एक्ट को बदलवाने की बात सरेआम कह रहा है । हम महिला पहलवान अंदर से ऐसा महसूस कर रही है कि इस देश में हमारा कुछ बचा नहीं है। हमें वे पल याद आ रहे हैं, जब हमने ओलंपिक, वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीते थे ।अब लग रहा है कि क्यों जीते थे। क्या इसलिए जीते थे कि तंत्र हमारे साथ ऐसा घटिया व्यवहार करे । हमें घसीटे और हमें ही अपराधी बना दे ।
ये मेडल अब हमें नहीं चाहिए, क्योंकि इन्हें पहनाकर हमें मुखौटा बनाकर सिर्फ अपना प्रचार करता है यह तेज सफेदी वाला तंत्र। और फिर हमारा शोषण करता है । हम उस शोषण के खिलाफ बोले तो हमें जेल में डालने की तैयारी कर लेता है।
इन मेडलों को हम गंगा में बहाने जा रहे हैं, क्योंकि वह गंगा मां हैं. जितना पवित्र हम गंगा को मानते हैं, उतनी ही पवित्रता से हमने मेहनत कर इन मेडलों को हासिल किया था । ये मेडल सारे देश के लिए ही पवित्र हैं और पवित्र मेडल को रखने की सही जगह पवित्र मां गंगा ही हो सकती हैं, ना कि हमें मुखौटा बना फायदा लेने के बाद हमारे उत्पीड़क के साथ खड़ा हो जाने वाला हमारा अपवित्र तंत्र।
मेडल हामारी जान हैं, हमारी आत्मा हैं ।इनके गंगा में बह जाने के बाद हमारे जीने का भी कोई मतलब नहीं रह जाएगा । इसलिए हम इंडिया गेट पर आमरण अनशन पर बैठ जाएंगे । इंडिया गेट हमारे उन शहीदों की जगह है, जिन्होंने देश के लिए अपनी देह त्याग दी । हम उनके जितने पवित्र तो नहीं हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलते वक्त हमारी भावना उन सैनिकों जैसी ही थीं ।