अखिलेश अखिल
पहलवानों ने कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण पर यौन शोषण से जुड़े दो एफआईआर दर्ज किए हैं ।इनमे एक एफआईआर पोस्को एक्ट से जुड़ा है ।इस एक्ट की कहानी ये है कि एफआईआर दर्ज होते ही गिरफ्तारी की जाती है ।फिर इस एक्ट में जमानत भी जल्दी नही मिलती ।लेकिन दिल्ली पुलिस ने अभी तक बृजभूषण शरण को गिरफ्तार नही किया है । क्या ऐसा पहले कभी हुआ ? राहुल गाँधी को सूरत की अदालत से दो दो साल की सजा मिलते ही उनकी सांसदी ख़त्म कर दी गई। इतनी जल्दबाजी क्यों की गई इस पर भी बीजेपी मौन ही है। लेकिन पोस्को एक्ट लगने के बाद भी गिरफ्तारी नहीं हो रही है इससे देश को क्या सन्देश देना चाहती है बीजेपी यह भी सबको पता है। दरअसल बीजेपी के लिए बृजभूषण सिंह चुनावी संपत्ति हैं। आधार दर्जन से ज्यादा सीटों पर दबदबे का असर है और इसका लाभ भी बीजेपी को मिलता रहा है। फिर ऐसे आदमी को इतनी जल्दी कैसे गिरफ्तारी हो सकती है ? दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है और पुलिस की कमान अमित शाह के हाथ में है। लोग कह सकते हैं कि दिल्ली पुलिस कुछ नहीं कर रही है लेकिन सच यही है कि इस मामले में गृह मंत्री ही कुछ नहीं कर रहे हैं।
बता दें कि बीजेपी के कई अन्य सांसदों की तुलना में संतों के साथ सांसद बृजभूषण शरण के मजबूत संबंध हैं और अयोध्या में राम मंदिर के लिए चले आंदोलन में उनकी निभाई हुई भूमिका भी उन्हें मजबूत बनाती है। पूर्वी यूपी में उनके दर्जनों शैक्षणिक संस्थान हैं, जो उनके वोट बैंक को जोड़ते हैं। और यह सब बीजेपी को लाभ पहुंचाते रहे हैं। भला बीजेपी कैसे बृजभूषण पर हाथ डाल सकती है। सामने लोकसभा चुनाव है। बीजेपी को लग रहा है कि बृजभूषण को जेल भेजा गया तो आधा दर्जन सीटें प्रभावित होंगी और ऐसा हुआ तो विपक्ष का खेल सफल हो जायेगा।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली पुलिस ने सिंह के खिलाफ दो मामले दर्ज किए हैं।प्राथमिकी में से एक नाबालिग लड़की की दी हुई यौन उत्पीड़न की लिखित शिकायत पर है, जो कड़े यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज की गई है, जिसमें जमानत की कोई गुंजाइश नहीं है। फिर भी दिल्ली पुलिस ने सिंह को गिरफ्तार करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है। सिंह जोर देकर कहते हैं कि वह जांच का सामना करेंगे, लेकिन ‘अपराधी के रूप में’ इस्तीफा नहीं देंगे।
अनुशासन पर दृढ़ रहने का दावा करने वाली बीजेपी ने फिलहाल उनके व्यवहार को लेकर आखें मूंद ली हैं। 2011 में डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभालने से बहुत पहले सिंह अपनी बाहुबली वाली छवि के लिए जाने जाते थे। अयोध्या आंदोलन में एक प्रमुख खिलाड़ी रहे सिंह को उस समय उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए वन-मैन आर्मी के रूप में जाना जाता था, जब पार्टी की राज्य में राजनीतिक मंच पर मौजूदगी कम थी।
सन् 1957 में गोंडा में जन्मे सिंह की राजनीति में दिलचस्पी सत्तर के दशक में एक कॉलेज छात्र नेता के रूप में शुरू हुई। उन्होंने प्रतिशोध के साथ राजनीति में प्रवेश किया, जब बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या आंदोलन के दौरान गोंडा आए थे। सिंह ने आडवाणी के रथ को ‘ड्राइव’ करने की पेशकश की और इसने उन्हें बीजेपी के भीतर तुरंत प्रसिद्धि दिलाई। सिंह ने अपना पहला चुनाव 1991 में गोंडा से राजा आनंद सिंह को हराकर जीता था। अगले वर्ष उन्हें बाबरी विध्वंस मामले में एक अभियुक्त के रूप में नामित किया गया, जिसने उनकी ‘हिंदू समर्थक छवि’ को मजबूत किया। उन्हें 2020 में अन्य लोगों के साथ बरी कर दिया गया था।
सिंह गोंडा, बलरामपुर और कैसरगंज से छह बार लोकसभा के लिए चुने जा चुके हैं और अपनी राजनीतिक सूझबूझ से कहीं ज्यादा उन्हें क्षेत्र के माफिया के रूप में जाना जाता रहा है। एक समय सिंह पर तीन दर्जन से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे। 1996 में उन पर अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के साथियों को पनाह देने का आरोप लगा था। उस पर आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया और उसे जेल भेज दिया गया। बाद में मुख्य रूप से सबूतों की कमी के कारण उन्हें मामले में बरी कर दिया गया था।
वर्ष 1996 में जब वह जेल में थे, तब बीजेपी ने उनकी पत्नी केतकी सिंह को लोकसभा का टिकट दिया और वह बड़े अंतर से जीतीं। दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी ने सिंह को हमेशा ‘पर्याप्त राजनीतिक संरक्षण’ दिया है, मुख्यत: पूर्वी यूपी और राजपूतों के बीच उनके दबदबे के कारण।
पार्टी नेतृत्व जानता है कि अगर उसने सिंह को बाहर का दरवाजा दिखाया तो उसे सीटों का नुकसान होगा। सदी के अंत के बाद ही सिंह का दबदबा बढ़ा है और इसलिए उनकी धन शक्ति भी बढ़ी है। उनकी बेशर्मी इस बात से जाहिर होती है कि उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान सिंह ने एक टीवी चैनल को दिए एक साक्षात्कार में स्वीकार किया कि उन्होंने एक हत्या की थी – ऐसा कुछ, जिसे सबसे खूंखार अपराधी भी कैमरे के सामने स्वीकार नहीं करता है।
इससे पहले, 2009 में सिंह कुछ समय के लिए बीजेपी से अलग हो गए थे और सपा में शामिल हो गए थे, लेकिन 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले वह बीजेपी में वापस आ गए। बीजेपी में जैसे-जैसे उनका कद बढ़ा, वैसे-वैसे उनका ‘कारोबार’ भी फलता-फूलता गया। वह लगभग 50 स्कूलों और कॉलेजों के मालिक हैं और शराब के ठेकों, कोयले के कारोबार और रियल एस्टेट में दबंगई के अलावा खनन में भी उनकी दिलचस्पी है। सिंह हर साल अपने जन्मदिन पर छात्रों और समर्थकों को मोटरसाइकिल, स्कूटर और पैसे उपहार में देने के लिए जाने जाते हैं। क्या ऐसे नेता को बीजेपी हाथ भी लगा सकती है ? यूपी की राजनीति में सिंह के सहारे ही बीजेपी चलती है। बीजेपी के लिए सिंह की जरूरत है न कि सिंह को बीजेपी की जरुरत है।
लोकसभा चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं, इसलिए बीजेपी सिंह को निशाना नहीं बना सकती। वह राज्य की राजनीति में अधिक प्रभावशाली ठाकुर नेता हैं, भले ही योगी आदित्यनाथ की भी पहचान ठाकुर नेता के रूप में है।

