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किसका ‘अमृतकाल’ और किसका ‘विषकाल’?

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प्रकाश पोहरे (प्रधान संपादक- मराठी दैनिक देशोन्नति, हिंदी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)

फिलहाल देश का ज्यादातर हिस्सा राममय हो गया है। दरअसल, यह कहना ज्यादा सही होगा कि भारतीय जनता पार्टी ने ऐसा ही किया है। (हालांकि, इसमें लक्ष्मण और सीता कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। यहां तक ​​कि राम को भी बीजेपी ने ‘अलग-थलग’ कर दिया है!) 22 जनवरी को ‘राजनीतिकरण’ वाली ‘राम भक्ति’ अपने चरम पर पहुंचाई गई। दरअसल, इस बात की कोई संभावना नहीं है कि सत्ताधारी दल में कोई ‘राम’ है, जो साहसपूर्वक कहेगा कि राम भक्ति का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए, जबकि वही राम भक्त जो राम लला की मूर्ति में प्राण फूंक रहे हैं(?) अयोध्या में नवनिर्मित मंदिर निर्माण को लेकर अभी से ही हर तरफ चिंता जताई जा रही है। यहां विपक्षी दल के ‘आयाराम’ के लिए बहुत बड़ा मौका है, लेकिन अगर वही विपक्षी दल के सदस्य सत्ता के खिलाफ बोलते हैं या सत्ताधारी दल के ‘सहयोगी’ की ‘वॉशिंग मशीन’ में गोता लगाने से इनकार करते हैं, तो ‘ईडी’ की एक पुकार पर तुरंत दौड़कर चले आते हैं।

फिलहाल बीजेपी के साथ ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स भी चुनाव लड़ रहे हैं। हालाँकि चुनाव आयोग का अभी तक भाजपा में विलय नहीं हुआ है, लेकिन उसका भाजपा के साथ गठबंधन है, जो कई चुनावों के दौरान देखा गया है, और चंडीगढ़ मेयर चुनाव में प्रमुख रूप से दिखा भी…!

भाजपा सरकार ने कानूनन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इसीलिए चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करने वाली समिति से बाहर कर दिया है। इधर ‘इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें’ तैनात की गई हैं। इन ईवीएम मशीनों का निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) द्वारा किया जाता है। इस कंपनी के सात निदेशकों में से चार भाजपा नेता हैं। देशभर में इस समय ईवीएम पर सवालिया निशान उठ रहे हैं। तो जो लोग खुद को राम भक्त कहते हैं, उन्हें रामायण से कुछ सीखना चाहिए या नहीं..?

हमने रामायण में देखा या पढ़ा होगा कि जब किसी ने सीता माता की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था, तो प्रभु श्री रामचन्द्र ने सीता माता को अग्नि परीक्षा देने के लिए मजबूर किया था। उसी तरह हमारे देश के लाखों, करोड़ों नागरिकों ने जब ईवीएम, सरकार और चुनाव आयोग की भूमिका और उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए, तो स्वयंभू रामभक्त सरकार ‘ईवीएम’ के बजाय बैलेट पेपर पर चुनाव कराने का निर्णय लेकर मां ‘सीता’ की तरह ‘अग्निपरीक्षा’ क्यों नहीं दे देतीं? लेकिन ऐसा नहीं किया जाना है, क्योंकि सत्तारूढ़ बीजेपी ने 2047 का एजेंडा तय कर लिया है। आज बजट पेश करते हुए इसे दोहराया गया है। बीजेपी में इतना ‘अति आत्मविश्वास’ कहां से आया? क्या ‘ईवीएम’ में छिपी है ये ‘अमृतकाल रणनीति’? शायद इसीलिए पेश किए गए बजट में ऐसा कुछ नहीं था, जिससे इस देश के आम आदमी को राहत मिले। 140 करोड़ में से 80 करोड़ गरीबों को ‘मुफ़्त’ राशन, इस एक ‘रेवड़ी’ को छोड़कर सरकार को इस बजट से आम लोगों के लिए कोई लोकप्रिय घोषणा करने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई, इस ‘ईवीएम’ में छिपा हो सकता है इसका राज!

अमृतकाल कहने के बाद कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। क्योंकि ‘अमृतकाल’ में सब कुछ ठीक चल रहा है! और अब सोने पर सुहागा के जैसे मोदी ने राम राज्य की कथित तौर पर स्थापना भी कर दी है, शायद इसीलिए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए बजट को अमृत काल वाला बताया गया। कोई पार्टी जनता की कितनी हितैषी है और कितनी उद्योगपतियों की, इसका पता चुनावी मैदान में नहीं, बल्कि बजट से चलता है। चुनाव मैदान में बड़े-बड़े भाषण दिये जा सकते हैं, वादों का अंबार लगाया जा सकता है, लेकिन बजट में ऐसा कुछ नहीं किया जा सकता। इसलिए सत्ताधारी राजनीतिक दल की नियति को समझने के लिए उसके द्वारा पेश किए गए बजट पर नजर डालनी होगी। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हम बजट से समझते हैं कि सरकार विभिन्न करों के माध्यम से जनता द्वारा भुगतान किए गए पैसे के साथ क्या कर रही है? जनता द्वारा सरकार इसीलिए चुनी जाती है, ताकि उनके लिए कुछ किया जाए! बजट से ही पता चलता है कि सरकार ऐसा कर रही है या नहीं…..!

मोदी सरकार चाहे कितना भी ढोल पीट ले और कहे कि हम ‘अमृतकाल’ में प्रवेश कर रहे हैं, धीरे-धीरे यह एहसास हो रहा है कि यह ‘संकटकाल’ है और आगे भी रहेगा। सरकार ने खुद 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन देने की घोषणा की है और यह साबित कर दिया है कि आज भी इस देश में 80 करोड़ लोग आदिम काल में जी रहे हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन इस हकीकत को आज वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का ढोल पीटकर दबा दिया।

दरअसल, इस बजट में किसानों के लिए कोई नई घोषणाएं नहीं हैं। आए दिन खबरें आती रहती हैं कि देशभर में कृषि जिंसों की कीमतों में बढ़ोतरी का रोना रोया जा रहा है। पेट्रोल, डीजल, गैस के दाम जस के तस हैं। कुल मिलाकर सरकार ने इस बजट के जरिये सिर्फ विकास का छलावा रचा है।
दरअसल, अगर 3.7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की हकीकत समझनी है, तो आईएमएफ की चेतावनी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत पर कर्ज का बोझ 2013 में 55 लाख करोड़ के मुकाबले दिसंबर 2023 में बढ़कर पिछले 10 सालों में यह आंकड़ा 205 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी भारत सरकार को चेतावनी दी है। सरकार चाहे इसे कितना भी नकारे और यह जताने की पुरजोर कोशिश करे कि विकसित भारत का सपना सिर्फ उसकी सरकार ही पूरा कर सकती है, लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि देश पर कर्ज का पहाड़ देश की चिंता बढ़ा रहा है।

केंद्र सरकार ने जब 2022-23 और 2023-24 का बजट पेश किया, तो बजट में तीन बड़े संकटों से निपटना और उनका समाधान ढूंढना था। वे तीन संकट हैं- बेरोजगारी, कृषि और लघु उद्योग! सरकार ने जो 2024-25 का बजट पेश किया, वह उक्त तीनों ही तीनों स्तरों पर घोर निराशा प्रकट करता है।

दो साल पहले वित्त मंत्री सीतारमण ने 2022-23 का बजट पेश करते हुए रोजगार बढ़ाने के लिए ‘पीएलआई योजना’ (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम) की घोषणा की थी और कहा था कि इसके जरिए अगले 5 साल में 60 लाख नौकरियां पैदा होंगी। सरकार यह आँकड़ा क्यों नहीं बता रही कि इससे वास्तव में कितनी नौकरियाँ पैदा हुईं? निर्मला सीतारमण के इस साल के पूरे बजट भाषण में एक बार भी ‘बेरोजगारी’ शब्द नहीं आया। ‘अमृतकाल’ में बेरोजगारी कैसे हो सकती है? इसीलिए शायद इस शब्द का उल्लेख नहीं किया होगा!

वर्तमान समय में रेलवे, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे कई सरकारी क्षेत्रों में लाखों पद खाली हैं। इन पदों की परिपूर्ति के बारे में इस बजट में कुछ नहीं कहा गया। इसके विपरीत, ग्रामीण क्षेत्रों में करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाली मनरेगा में पहले वित्तीय वर्ष 2023-24 में 30,000 करोड़ रुपये की कटौती की गई थी और इस बजट में मनरेगा के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है।

अब आइए कृषि की ओर रुख करें। सबने सोचा था कि इस बार कृषि पर फोकस होगा और किसानों की आय बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा, लेकिन बजट में ऐसा कहीं नजर नहीं आया। पिछले साल करीब 10 लाख टन अरहर दाल का आयात किया गया था। प्याज पर निर्यात प्रतिबंध लगाया गया। गेहूं और चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। भारतीय कपास को थोड़ी अधिक कीमत क्या मिलने लगी, तो केंद्र सरकार ने अमेरिकी कपास को 4,500 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से आयात कर लिया। भारत में कपास महंगा है, ऐसा शोर मचाकर कई कपास उद्यमियों ने विदेशों से बड़ी मात्रा में कपास की गांठें और धागों की बुकिंग कर डाली। अधिकांश कपास ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात किया जाता है, जहां उनकी सरकारों द्वारा किसानों को दी जाने वाली भारी सब्सिडी के कारण कपास सस्ता है। आयात शुल्क में छूट के कारण कपास बाजार में व्यापारी विदेशी कपास पर जोर दे रहे हैं। परिणामस्वरूप, भारत में कपास की कीमत गिर गई और किसानों की मेहनत बर्बाद हो गई। किसानों की मांग थी कि सरकार 22 फसलों के लिए गारंटीशुदा कीमत दे। लेकिन इस बजट में एक भी नई फसल की गारंटी नहीं दी गई है।

‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना’ में एक भी रुपया नहीं बढ़ाया गया। कृषि मंत्रालय का बजट भी नहीं बढ़ाया गया। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि सरकार ने कृषि क्षेत्र की उपेक्षा की है और किसानों को ही चुना लगाया है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी होनी थी, लेकिन क्या हुआ? इसका जिक्र इस बजट में नहीं है, बल्कि खेती के लिए जरूरी सभी वस्तुएं दोगुनी महंगी हो गई हैं और कीमतें आधी हो गई हैं, यानी खेती चौगुनी हो गई है।

आज देश में जो कुछ हो रहा है, उस पर अलग-अलग राय है। कोई कहता है कि यह ‘अमृतकाल’ है, तो कोई इसे ‘जहरकाल’ मानता है। बेशक इस पर बहस होगी, लेकिन देश के समग्र हालात की हकीकत पर गौर करें, तो क्या पता चलता है! यह सच है कि विकास हो रहा है. लेकिन किसका विकास हो रहा है? आम जनता यह सवाल पूछने से डरती है। बढ़ती बेरोजगारी के कारण ईंधन, आवश्यक वस्तुएं, यात्रा सहित सभी की कीमतों में वृद्धि जारी है। इसके साथ ही उंगलियों पर गिने जा सकने वाले कुछ अमीर लोगों की संपत्ति कई गुना बढ़ी नजर आ रही है। सेंसेक्स, निफ्टी नई ऊंचाई पर हैं, लेकिन फायदा केवल कुछ खास लोगों को होगा और अगर वे गिरे तो ‘हाय-हाय’ चिल्लाएंगे। बेशक, यह सरकार उनकी बहुत मदद करेगी, जैसे उनका लाखों-करोड़ों का कर्ज पूरी तरह माफ कर दिया गया। लेकिन छोटे-मोटे कर्ज के लिए किसानों को काफी परेशान किया जाता है। इन सबके चलते यह सरकार किसके लिए है? इस सवाल का जवाब आसानी से मिल जाता है। लेकिन कई लोग अभी भी इसके बारे में नहीं सोचते हैं। अंधभक्तों और उनकी भक्ति अद्भुत लगती है। आखिर ऐसा क्यों है? मैं पाठकों से कहना चाहता हूं कि वे इस ‘क्यों’ का उत्तर जरूर ढूंढ़ें।

लेखक – प्रकाश पोहरे
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