Homeप्रहारदेश को डुबोने का युति सरकार का 'डबल गेम'..!

देश को डुबोने का युति सरकार का ‘डबल गेम’..!

Published on

प्रकाश पोहरे (प्रधान संपादक- मराठी दैनिक देशोन्नति, हिंदी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)

2019 के पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से महाराष्ट्र के इन पांच वर्षों को एक शब्द में संक्षेपित किया जा सकता है – ‘अराजकता’…! राजनीतिक कीचड़ उछालने, कोविड-19 से पहले सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य और लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था ने पिछले पांच वर्षों में राज्य की नींव को कमजोर कर दिया है। इसके अलावा, गैर-जिम्मेदार राजनीतिक नेताओं द्वारा भड़काए गए सांप्रदायिक और धार्मिक तनाव ने सामाजिक सद्भाव को खतरे में डाल दिया। चूंकि विधानसभा चुनाव इस साल 20 नवंबर को एक ही चरण में होंगे, इसलिए इन पांच वर्षों पर अच्छी तरह नजर डालना और आने वाले चुनावों के महत्व को समझना जरूरी है।

महाराष्ट्र ने पिछले पांच वर्षों में राजनीतिक साजिशों की भारी कीमत चुकाई है। यह कीमत तीन स्तरों पर आई। एक है राजनीतिक अनिश्चितता। दूसरा है राज्य की आर्थिक गिरावट और तीसरा है बिगड़ता सामाजिक सौहार्द। विधायकों का दल-बदल, भागमभाग, खरीद-फरोख्त और इन सब पतित आचरणों से रसातल में डूब चुकी राजनीतिक भाषा…! महाराष्ट्र जिस भाईचारे और लोकतांत्रिक राजनीतिक संस्कृति का गौरव पूरे देश में प्रदर्शित करता था, वह गौरव अब नष्ट हो चुका है।

राज्य की महायुति सरकार ने जो कुछ बर्बाद किया है, उसे देखकर यह पूछने का समय आ गया है कि ‘महाराष्ट्र को कहां ले गये ये लोग?’ राज्य सरकार पर ठेकेदारों का 40,000 करोड़ रुपये का बिल बकाया है। जिसमें से लोक निर्माण विभाग 24,000 करोड़, ग्रामीण विकास 6500 करोड़, जल जीवन मिशन 1900 करोड़, जल संरक्षण 978 करोड़, मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना 1876 करोड़, नगर निगम 956 करोड़ रु शामिल हैं। चुनाव को देखते हुए जल्दबाजी में टेंडर कराए गए और परिणाम स्वरूप घटिया कार्य कराए गए। एक तरफ जहां ये बिल लंबित हैं, वहीं महायुति सरकार ने 9600000000 (96 हजार करोड़) रुपये की नई योजनाओं की घोषणा की है। जैसे लाड़ली बहन योजना। इस एकल योजना का बजट 4600000000 (46 हजार करोड़) रूपये है। योजना के क्रियान्वयन पर 4000 करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं। इसके ऊपर लाडला भाऊ योजना, मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना जैसी योजनाओं पर भी खर्च किया जा रहा है।

लाडली बहिन योजना का नवंबर माह में प्राप्त पैसा अक्टूबर माह में ही ‘लाड़ली बहिन’ को दे दिया गया, क्योंकि आचार संहिता लगने से पहले ही ‘रेवड़ी’ वितरण की आवश्यकता थी। 2014 में राज्य पर 50,000 करोड़ का कर्ज था, आज पिछले 10 साल में यह 9 लाख करोड़ हो गया है। सरकार के पास कर्ज की किश्तें चुकाने के लिए भी पैसे नहीं हैं, किसानों की फसल की गारंटी के लिए पैसे नहीं हैं, किसानों को फसल बीमा नहीं मिलता है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश पर कर्ज का पहाड़ खड़ा कर और रेवड़ी बांटकर सत्ता हासिल करनी है और अगर नहीं भी आई तो सरकार के पास विकास कार्यों के लिए पैसे नहीं होंगे, क्योंकि मौजूदा सरकार के पास न सिर्फ राजकोष ख़त्म हो गया, लेकिन ऋण और वेतन बकाया है। अनुबंध द्वार भी बकाया है, और ऐसी योजनाओं की घोषणा की गई और फिर वापस आ गई….

यह दोहरा खेल (डबल गेम) है कि वे इस विफलता के लिए दूसरों को दोषी ठहराने को तैयार होंगे!

2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने सभी के खाते में 15 लाख रुपये जमा करने की घोषणा की थी। क्या वह प्रलोभन नहीं था? और इसका पालन नहीं किया गया, क्या यह धोखाधड़ी नहीं है? भाजपा कार्यकर्ताओं, समर्थकों, शुभचिंतकों, भक्तों और कट्टरपंथियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि गरीबों को गैस कनेक्शन, लोकसभा चुनाव से पहले किसानों के खातों में एक निश्चित राशि जमा करना और ऐसी कई अन्य रियायतें सरकार के खजाने से सिर्फ वोट पाने के लिए दी गई रिश्वत ही थीं। महाराष्ट्र में शिवसेना का 10 रुपये में खाना देने का ऐलान बेशक ‘रेवड़ी’ आवंटन ही थी। उसे शह देने और वोट पाने के लिए ‘मैं वापस आऊंगा’ का नारा देकर 5 रुपए में भोजन देने की घोषणा बीजेपी ने की थी। अर्थात रेवाड़ी बांटना नया नहीं है। लंबे समय तक बीजेपी ने ही दिल्ली चुनाव में मतदाताओं को दो रुपये में गेहूं का आटा और मुफ्त स्कूटी जैसी कई रियायतों का लालच भी दिया था।

2019 के बाद बीजेपी ने उद्धव सरकार को बदनाम करने के लिए हर हथकंडा अपनाया। भाजपा नेताओं ने दैनिक आधार पर महाविकास आघाड़ी सरकार पर हमला किया और सबसे बुरी बात यह कि भाजपा ने महाविकास आघाड़ी के नेताओं के खिलाफ ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग जैसी जांच एजेंसियों को तैनात करने के लिए केंद्र सरकार का इस्तेमाल किया। राज्य के हिस्से के जीएसटी का भुगतान नहीं कर वित्तीय संकट पैदा करने की कोशिश भी की गई।

उसके बाद ’50 खोके… एकदम ओके’ हो गए और सत्ता परिवर्तन हो गया। तब से राज्य में जो निरंकुशता कायम हुई है, उसे सभी जानते हैं।

अब राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली शिंदे-फडणवीस-अजित पवार सरकार वही काम कर रही है, जो ‘आपकी नीति और किसी और का बिगड़ैल बच्चा’ है। देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है, जिसके बाद यह स्पष्ट है कि महायुति सरकार ने राज्य को पूरी तरह से नष्ट करने की योजना बनाई होगी!

विपक्ष पर भाजपा के तीखे हमले ने राज्य की राजनीतिक संस्कृति में एक बड़ा बदलाव ला दिया है और यहां के राजनीतिक नेताओं के बीच अब तक अज्ञात शत्रुता पैदा हो गई है।

बीजेपी या एकनाथ शिंदे ने मान लिया है कि वे अब मतदाताओं की नजरों से दूर हो रहे हैं, इसलिए अब ‘रेवड़ी’ आवंटन ही एकमात्र विकल्प है! क्योंकि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी की राजनीति को बड़ा झटका लगा है। राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने 2024 में केवल 9 सीटें जीतीं, जबकि 2014 और 2019 में उद्धव के साथ गठबंधन में क्रमशः 24 और 23 सीटें जीती थीं। बीजेपी 1990 के बाद 2014 में 123 सीटें और 2019 में 105 सीटें जीतने वाली पहली पार्टी बनी। हालाँकि, आम चुनाव के नतीजों को देखते हुए ऐसा लगता है कि बीजेपी के लिए इस बार ऐसा पिछला प्रदर्शन दोहराना मुश्किल होगा।

लोकसभा नतीजों ने भाजपा के बारे में यह मिथक भी तोड़ दिया है कि वह दीर्घकालिक राजनीति करती है। कहा गया कि पार्टी तोड़ना, विधायक भगा कर ले जाना, सरकार बनाना बीजेपी की लंबी रणनीति का हिस्सा था। लेकिन लोकसभा नतीजों से साफ हो गया कि बीजेपी के पास कोई दीर्घकालिक योजना नहीं है। वे जिस ‘डबल इंजन’ की बात करते हैं, वह वास्तविक ऋण वापस लेकर किसानों को कर्ज में धकेल कर मुफ्त ‘रेवड़ी’ बांटने की राजनीतिक नौटंकी है। लेकिन इस राजनीति में सबसे बुरी बात यह हुई है कि राज्य को इस राजनीतिक अस्थिरता की भारी कीमत चुकानी पड़ी है। एक समय देश का सबसे अधिक औद्योगीकृत राज्य रहा महाराष्ट्र, अब विकास के कई पहलुओं में पिछड़ गया है। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक 2014-19 में राज्य की आर्थिक वृद्धि दर 6.1 फीसदी थी, जो 2019-24 में घटकर 4.5 फीसदी रह गई है।

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, 2014-19 में महाराष्ट्र राज्य, देश के प्रति व्यक्ति आय सूचकांक में 6 वें स्थान पर था। हालांकि, 24 जुलाई 2023 के प्रेस सूचना ब्यूरो के प्रेस नोट के अनुसार, प्रति व्यक्ति शुद्ध एसडीपी 1.46 लाख रुपए के साथ महाराष्ट्र वास्तव में 11वें स्थान पर आ गया है। औद्योगिक क्षेत्र में औसत विकास दर 2014-19 में 5.5 प्रतिशत से घटकर 2019-24 में 1.3 प्रतिशत हो गई है। 2019 से 2014 तक औसत उत्पादन वृद्धि दर केवल 1 प्रतिशत नकारात्मक रही है।

सामाजिक स्तर पर भी राज्य को भारी क्षति हुई है। भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा अपराधों और घृणा भरे भाषणों का दस्तावेजीकरण करने वाली एक स्वतंत्र शोध परियोजना, हिंदुत्व वॉच ने दिखाया है कि 2023 में देश में सबसे ज्यादा नफरत भरे भाषण महाराष्ट्र में ही हुए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि 2022 में देश में दंगा मामलों में गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या सबसे अधिक महाराष्ट्र में ही है। राजनीतिक आलोचकों ने बार-बार बताया है कि हिंदुत्व-विचारधारात्मक समूहों ने हालिया लोकसभा चुनावों से पहले नफरत फैलाकर समाज का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की है।

दूसरी ओर, आरक्षण के मुद्दे ने पिछले आठ महीनों में राज्य में मराठों और ओबीसी के बीच दरार पैदा कर दी है। इस संवेदनशील मुद्दे पर राज्य सरकार का कुप्रचार जटिल और विस्फोटक हो गया है। इसका दूसरा कारण छगन भुजबल जैसे मंत्रियों और बीजेपी से जुड़े कई नेताओं के समय-समय पर दिए गए भड़कीले बयान थे, जिससे स्थिति और भी बिगड़ गई। सत्ता में मौजूद मण्डली को शांति बनाने के लिए काम करना चाहिए। लेकिन यहां तो उलटा ही हुआ लगता है। वास्तविक बड़ी चुनौतियाँ इन सांप्रदायिक और धार्मिक तनावों से छिपी हुई हैं।

आज राज्य के सामने कृषि क्षेत्र का बड़ा संकट है। राज्य की 55 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। इनमें से 87 फीसदी लोग खेती पर निर्भर हैं। महाराष्ट्र को देश में किसान आत्महत्याओं में अग्रणी होने का गौरव प्राप्त है। इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि पुलिस कार्यालय के रिकॉर्ड में इस साल 15 जुलाई तक लगभग 600 किसानों ने आत्महत्या की है, जबकि यह संख्या निश्चित रूप से इससे अधिक है। किसानों की आत्महत्याओं से ज्यादा राजनीतिक घटनाओं ने मीडिया और सोशल मीडिया का ध्यान खींचा है। और इसका राज्य में प्रशासन पर बहुत ही नकारात्मक असर पड़ा है।

आगामी विधानसभा चुनाव इसी पृष्ठभूमि में हो रहा है। महाराष्ट्र का गठन 1960 में हुआ था। नये राज्य का पहला चुनाव 1962 में हुआ। यह राज्य के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चुनावों में से एक था। क्योंकि राज्य का गठन बॉम्बे और मध्य भारत के दो अलग-अलग प्रांतों- सीपी एन्ड बरार प्रांत से हुआ था। अत: नई राजनीतिक व्यवस्था को अपनाना एक प्रकार से 1962 में ही हो गया था। उसके बाद महाराष्ट्र में 12 बार विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन स्थिति इतनी गंभीर कभी नहीं थी जितनी आज है।

एक तरह से 1962 के बाद से महाराष्ट्र के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव 2024 का ही हो रहा है। यह उस गौरव को पुनः प्राप्त करने का चुनाव है, ये बात मैं पहले भी कई बार कह चुका हूं और कई बार कहता रहूंगा। थोड़ा-बहुत नहीं, बल्कि पिछले दो हजार साल का इतिहास है कि जब-जब इस देश पर संकट आया, ये मेरा महाराष्ट्र उस संकट के सामने सीना तानकर खड़ा हो गया और इसी नए देश को बचाया है। लेकिन अब मेरे अपने महाराष्ट्र को ही बचाने का समय आ गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। लेकिन अब निराश होने का समय नहीं है। महाराष्ट्र तभी बचेगा, जब यह देश बचेगा…. और उसके लिए मूलतः महाराष्ट्र को इस देश के लिए मजबूत करना होगा। आने वाला चुनाव टूटते, कमजोर होते महाराष्ट्र को पुनर्जीवित करने वाला, सही रास्ते पर लाने वाला होना चाहिए। यह महज इच्छा नहीं, हमारी ऐतिहासिक जिम्मेदारी है।

========================
लेखक : प्रकाश पोहरे

(प्रकाश पोहरे से सीधे 98225 93921 पर संपर्क करें या इस व्हाट्सएप पर अपनी प्रतिक्रिया भेजें। कृपया प्रतिक्रिया देते समय अपना नाम-पता लिखना न भूलें)

Latest articles

न्यूजीलैंड की टीम से मिली हार के बाद भारतीय टीम में बड़ा परिवर्तन

बेंगलुरु के एम चिन्नास्वामी में भारत को 36 साल बाद अपने घर में न्यूजीलैंड...

IND vs NZ: टीम इंडिया ने दूसरे और तीसरे टेस्ट के लिए किया स्क्वाड का ऐलान, हार के बाद BCCI ने लिया बड़ा फैसला

न्यूज डेस्क बेंगलुरु में भारत को न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज के पहले मैच में 8...

More like this

न्यूजीलैंड की टीम से मिली हार के बाद भारतीय टीम में बड़ा परिवर्तन

बेंगलुरु के एम चिन्नास्वामी में भारत को 36 साल बाद अपने घर में न्यूजीलैंड...

IND vs NZ: टीम इंडिया ने दूसरे और तीसरे टेस्ट के लिए किया स्क्वाड का ऐलान, हार के बाद BCCI ने लिया बड़ा फैसला

न्यूज डेस्क बेंगलुरु में भारत को न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज के पहले मैच में 8...