

साने गुरुजी का नाम लेते ही एक संवेदनशील, विनम्र, कोमल और प्यारा, शांत और संयमित व्यक्तित्व आंखों के सामने आ जाता है। साने गुरुजी का नाम लेते ही याद आती है ‘श्याम की माँ’ (श्यामची आई)। सानेगुरुजी मतलब सरस्वती के उपासक। उनका नाम लेते ही सिर स्वत: झुक जाता है, लेकिन अब समय बदल गया है। जिनके चरणों में श्रद्धा से झुकना होता है, वे चरण लुप्त हो गए हैं। सानेगुरुजी का मामला सामने आने का कारण यह है कि हाल ही में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई।
सरस्वती नाम की लड़की मनोज साने नाम के शख्स के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही थी। वह उनसे चौबीस साल छोटी थीं। वे कई सालों तक साथ रहे। वह एक अनाथ थी। एक दिन उनके बीच किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई, जिससे इस पागल का सिर घूम गया। उसने उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। वह यहीं नहीं रुका। उसने सचमुच आरा मशीन से उसके शरीर को काट-काट कर टुकड़े-टुकड़े कर दिए। फिर वह इन टुकड़ों को कुकर में उबलता रहा।
इसके बाद उसने उन उबले हुए टुकड़ों को मिक्सर में पीस लिया। फिर वह उन टुकड़ों को गली के कुत्तों को खिलाता रहा। उसने लड़की के शव के कई टुकड़ों को अपने घर में ही सडऩे रहने दिया। इस दौरान यह क्रूर व्यक्ति उसी घर में ही रहता रहा। अंगों के सड़ने की दुर्गंध जब चारों तरफ फैली, तो पड़ोसियों को भी तेज दुर्गंध आने लगी। तब उन्होंने पुलिस से शिकायत की। उनकी शिकायत पर जब पुलिस नराधम के घर पहुंची, तो घटना का पता चला लड़की के शरीर के टुकड़े पूरे घर में बिखरे पड़े थे। इस खौफनाक मंजर को देखकर शैतान को भी शर्म आ गई होगी। तभी मैंने सोचा कि आज कहाँ मानवता के पुजारी व सरस्वती के उपासक साने गुरुजी….! और कहाँ ये सरस्वती का संहारक मनोज साने…!
दिमाग सुन्न हो गया!
इन दिनों मानव वेश में ऐसे राक्षस हर जगह देखे जा सकते हैं। जहां गैंगरेप होते हैं, जहां बच्चियों को तड़पा-तड़पा कर मार दिया जाता है, जहां तंदूर कांड होते हैं। कुछ कामुक लोग असहाय महिलाओं की स्थिति का फायदा उठाते हैं और उनका यौन शोषण करते हैं। सोशल मीडिया पर तरह-तरह के क्राइम शो, यू-ट्यूब पर कहानियां, समाज में उमड़ रही विभिन्न विषयों की बाढ़, इन सबसे ऐसे सिरफिरे हत्यारों को नई-नई वीभत्स कल्पनाएं सूझती हैं। कॉमन सेंस गिरवी रखने वाले कितने ही नौजवान अब स्वार्थ की हवा पर सवार होते दिख रहे हैं। भोगसम्राटों की ऐसी सेना हर जगह देखने को मिलती है। इसका कारण विभाजित परिवार व्यवस्था है। आर्थिक संपन्नता भी बड़ा कारण है। इस वजह से ये नराधम निरंकुश हो गए हैं। इसका दूसरा पक्ष यह है कि बेरोजगारी के कारण अपराध बढ़ रहे हैं। वैसे भी आजकल समाज का किसी पर कोई दबाव नहीं है।
पिछले 2 महीने से दिल्ली में देश का नाम रौशन करने वाली हमारी पहलवान बेटियां इंसाफ के लिए संघर्ष कर रही हैं और पूरा देश मायूस होकर देख रहा है कि हमारी सरकार बृजभूषण जैसे नराधम का समर्थन कर रही है। ऊपर से पीड़ित लड़कियों पर ही केस दर्ज हो रहे हैं। समूचा देश हताश होकर यह सब देख रहा है।
ऐसा आज कई क्षेत्रों में हो रहा है। क्योंकि जब राजसत्ता कपटी, बदमाशों और तड़ीपार लोगों द्वारा चलाई जाती है, तो उनसे अलग होने की उम्मीद करना मूर्खों के स्वर्ग में रहने जैसा है। किसी विषय पर सही समय पर खड़े नहीं होने की भारी कीमत वर्तमान में देश चुका रहा है।
इंटरनेट की बदौलत पूरी दुनिया हमारे घरों में आ गई है। लेकिन आदमी आदमी से बहुत दूर हो गया है। आबादी बढ़ी है, लेकिन रिश्ते खो गए हैं।
“मैं भीड़ में मनुष्य को ढूंढ रहा हूं।’
ऐसी दयनीय स्थिति आज देखने को मिल रही है। पहले पड़ोसी भी एक ही घर के सदस्य जैसे रहते थे। लेकिन अब लगता है कि एक ही घर के परिवार एक-दूसरे के पड़ोस में रह रहे हों। उनका आपस में कोई संवाद नहीं होता। यूज एंड थ्रो के जमाने में पता ही नहीं चलता कि रिश्तों का पिछला बंधन कब ढीला पड़ गया। इसी का नतीजा है कि अपराधियों को खुली छूट दी जा रही है। ये छूट क्यों और कैसे मिली, इस पर विचार किया जाए तो देखा जा सकता है कि भ्रष्ट-तंत्र के कारण कानून का कोई भय नहीं रह गया है। यदि राजनीतिक नेताओं का समर्थन है, तो कानून के लंबे हाथ छोटे पड़ जाएंगे। यह एक संकेत है कि कानून का शासन खत्म हो गया है और अब कानून का कोई डर नहीं है।
रोशनी इंसानियत कि,
गुम हो गई है कहां?
साये हैं आदमी के
मगर आदमी कहां?
प्रसिद्ध कवि अनंत खेलकर कहते हैं कि–
किसे अपना कहूँ
ऐसा कौन बचा है?
जहरीला बीज
मानो दिल में बोया हो!
एक बाबा कहते हैं कि यदि बेल-पत्र को शहद में डुबोकर शंकर जी की पिंडी पर प्रवाहित किया जाए, तो विद्याध्ययन में सफलता मिलती है और यदि स्त्रियां पिंडी पर दूध डालें तो कैंसर दूर हो जाता है और सभी वर्ग के लोग इस मंदिर में आते हैं। ऐसे ढोंगी बाबा का आठ दिनों तक भक्ति भाव से प्रवचन सुनने समाज के सभी वर्गों के लोग अपनी मर्जी से आकर गर्दी करते हैं! प्रशासन और सरकार उनकी सेवा-सुश्रुषा में रहते हैं। हाईवे भी बंद कर दिए जाते हैं। अर्थात सब कुछ अतार्किक!!
बुआ, दादा, शिक्षक, पुलिस, नेता
चाहे भाई हो या पिता,
इससे कोई नहीं बचा।
एक निश्चित क्षेत्र पवित्र है, ऐसा छाती-ठोक कहने वाला
आजकल हमसे कोई नहीं मिलता।
साने गुरुजी की जीवनी… काश! साने सरनेम के किसी आदमी ने पढ़ी होती, तो कम से कम यह जानते हुए कि अपना सरनेम साने है, उसे इस तरह की दुर्बुद्धि नहीं आई होती।
जिस दिन तड़ीपार (जिलाबदर) हिस्ट्री शीटर ने गृह मंत्री के रूप में शपथ ली, उस दिन और कोरोना काल के समय में बेमतलब के मास्क और वैक्सीन की सख्ती के दौरान 140 करोड़ के इस महान, विशाल और गौरवशाली देश में कम से कम 14 लोग कम से कम 14 राज्यों के 14-14 शहरों में अपने हाथों में इन सबके खिलाफ बैनर लिए हुए होते, तो आज तस्वीर कुछ और दिखती।
खत्म हो रही परिवार व्यवस्था, जिम्मेदारी से बचने की महानगरीय मानसिकता, व्हाट्सअप और सोशल मीडिया के कारण बढ़ी अंधराष्ट्रवादी संस्कृति तथा लिव-इन रिलेशनशिप को अदालतों के जरिए मिली शोहरत और प्रतिष्ठा ने सबका दिमाग खराब कर दिया है। ऐसे माहौल में दिल्ली में तंदूर कांड और महाराष्ट्र में मनोज साने का कुकर कांड होता ही रहेगा।
यदि आप यह नहीं चाहते हैं, तो गलत को गलत बोलना सीखें और उसके खिलाफ खड़े होना शुरू करें। और यदि आप ऐसा नहीं करना चाहते हैं, तो फिर….
तुकाराम कहते हैं कि आपको जागना चाहिए,
चाहे कुछ भी हो जाए, आप घर बैठे-बैठे व्हाट्सएप या टीवी पर देखें (यदि दिखाया गया हो, तो….!
–प्रकाश पोहरे
(संपादक– मराठी दैनिक देशोन्नति, हिंदी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)
संपर्क : 98225 93921
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