Homeप्रहारचुनाव प्रक्रिया में क्रांतिकारी परिवर्तन समय की मांग

चुनाव प्रक्रिया में क्रांतिकारी परिवर्तन समय की मांग

Published on

प्रकाश पोहरे (संपादक- मराठी दैनिक देशोन्नति, हिन्दी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)

चुनाव के समय सभी राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवार का पर्यात हमें देते हैं और प्रचार पर करोड़ों रुपये खर्च करके हमें यह समझाने की कोशिश करते हैं कि केवल हमारी पार्टी ही देश और लोगों की सेवा कर सकती है। फिर मतदाता ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन देने वाली पार्टी का शिकार होकर उसी के उम्मीदवार को चुनाव जितवा देती है अथवा मौजूदा विधायक या सांसद को सबक सिखाने के लिए किसी नए व्यक्ति को चुन कर भेज देती है। इसी विषय पर मेरा 1995 का प्रहार  ‘चुनाव नहीं पाडवनूक’ जिज्ञासुओं ने अवश्य पढ़ना चाहिए।

एक उम्मीदवार एक पार्टी से शादी करता है, कुंकुम दूसरी पार्टी का लगाता है, मंगलसूत्र तीसरी पार्टी का पहनता है और चौथी पार्टी से विवाहेतर संबंध रखता है। ऐसी घृणित राजनीति आजकल देश में चल रही है। जो उम्मीदवार अपनी पार्टी के प्रति वफादार नहीं हो सकता, वह कभी मतदाताओं और देश के प्रति वफादार नहीं हो सकता।

यह सब बहुत गंदा, घृणित और मतदाताओं के साथ धोखाधड़ी है। सबसे शर्मनाक बात यह है कि जब दलबदल कानून लागू है, तो कानून को दरकिनार करके यह सब गंदा काम चल रहा है। इन सभी चीजों को गैरकानूनी बनाने की बेताब कोशिश की जा रही है। हमारे राजनेता इन सारी गैरकानूनी बातों को नियम-कानूनों के दायरे में लाकर अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं। इसका खेल खेला जा चुका है. 2019 के चुनावों के बाद महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ और फिर जंगल में क्या हुआ, क्या पहाड़ और क्या झाड़ी में हुआ! सब एकदम ओके हुआ और अब दो-दो उपमुख्यमंत्री तक आकर किस्सा रुक गया। ये सभी ताजा उदाहरण हैं।

यदि किसी पार्टी को वोट देने से कोई फायदा नहीं है, तो चुनाव आयोग को एक बार इस बात पर सहमत होना चाहिए कि राजनीति में राजनीतिक दलों की कोई आवश्यकता नहीं है और ऐसे में उसने नए नियमों का सुझाव देना चाहिए, या सत्तारूढ़ दल को संसद में एक सुधार विधेयक पेश करना चाहिए। लेकिन इसके लिए देश में आपसी विश्वास और कम से कम संसाधनों की साझेदारी का माहौल होना चाहिए, जो कि दुर्भाग्य से अटल बिहारी के साथ ही ख़त्म हो गया है।

दरअसल, मतदाता ही भूल गये हैं कि देश के असली मालिक मतदाता ही हैं। अधिकांश वर्तमान प्रत्याशियों को चोर कहना चोरों का अपमान है, क्योंकि चोर जानबूझकर नहीं, बल्कि मजबूरी में चोरी करता है, जबकि हमारे राजनेता जानबूझकर चोरी करते हैं। हमारे उम्मीदवारों को चोर नहीं, बल्कि लुटेरे और हत्यारे कहा जाना चाहिए, जो पिछले 75 वर्षों से संगठित डकैतियां और हत्याएं कर रहे हैं, मतदाताओं को एक तरह से लूट रहे हैं और उनके विश्वास की हत्या कर रहे हैं!

सभी राजनीतिक दल लुटेरों के गिरोह हैं और यद्यपि उनके नाम अलग-अलग हैं, लेकिन उन सभी का काम एक ही है…. नागरिकों और देश को लूटना!

तो इसका समाधान क्या है?

समाधान नंबर एक

इसका मतलब है पार्टी मुक्त भारत! इस अभियान की शुरुआत ‘पार्टीमुक्त भारत’ नामक संगठन द्वारा शुरू किया गया है और उसने भारत में सभी राजनीतिक दलों के 100 प्रतिशत बहिष्कार का आह्वान किया है।

इस संगठन का केंद्रीय विचार यह है कि मतदाताओं को स्वयं भारत के संविधान के अनुसार उम्मीदवारों का चयन करना चाहिए और देश के पहले सच्चे लोकतांत्रिक शासन की शुरुआत करनी चाहिए।

रैयतों का राज्य, सुराज्य

वे हम सभी के मन में आदर्श भारत के सपने को स्थापित करने और साकार करने की कल्पना करते हैं।

समाधान नंबर 2

सभी राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह को हटा दें और केवल उम्मीदवार के फोटो और नाम पर मुहर लगाएं। क्योंकि राजनीतिक दल वर्षों तक अपने चुनाव चिन्ह का प्रचार-प्रसार करते हैं और एक स्वतंत्र उम्मीदवार को प्रचार के लिए 15 दिन ही मिलते हैं। चुनाव चिन्ह का यह प्रावधान सभी के लिए समान अवसर के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।

समाधान क्रमांक 3 : मतदान को अनिवार्य बनाना

आज भारत में आम तौर पर 50 से 60-65 प्रतिशत मतदान होता है। 1947 में हमें आजादी मिली। यानी 75 साल हो गए। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, फिर भी लोग खुद न तो लोकतंत्र की परिभाषा समझते हैं और न ही अपनी जिम्मेदारियां।

इसलिए अगर हम सचमुच सोचते हैं कि देश में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होनी चाहिए, तो हमें देखना चाहिए कि अन्य देशों में मौजूदा स्थिति क्या है! अमेरिका, लंदन जैसे लोकतांत्रिक देश और जिस तरह से वे एक-दूसरे का सम्मान करते हैं और संसद या विधान सभा में बोलते हैं, वह चर्चिल द्वारा कहे गए शब्दों की याद दिलाता है। आज़ादी देते समय चर्चिल ने कहा था कि ये लोग नहीं जानते कि आज़ादी क्या होती है! इसकी पहचान आज हमारे सामने आ रही है। लोकसभा और राज्यसभा में जो चल रहा है, उससे तो मछली बाजार बेहतर लगता है। आज राज्यसभा और लोकसभा को चलाने का खर्चा आपके द्वारा वसूले गए टैक्स से ही चुकाया जाता है। लेकिन अगर इस देश की 50 फीसदी जनता पांच साल में एक बार आने वाले चुनाव में वोट नहीं देती, तो क्या उन्हें लोकतंत्र में रहने का कोई अधिकार है? मैं ऐसा सवाल सोचे बिना नहीं रह सकता। चूंकि शत-प्रतिशत मतदान नहीं होता है, तो उन मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दिये जाते हैं।

आज चुनाव सिर्फ पैसे का खेल बनकर रह गया है। निर्वाचित होने के बाद भ्रष्टाचार के जरिये यह पैसा निकाल लिया जाता है। पिछले दस वर्षों में हम यही देख रहे हैं कि कॉरपोरेट घरानों ने राजनीतिक दलों पर कब्ज़ा कर लिया है। लोकतंत्र की ऐसी गंभीर विकृति हमने पिछले दस वर्षों में देखी है। अनिच्छा से हमें यह कहना होगा कि मतदान को अनिवार्य बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इन सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए हमें एक चुनी हुई सरकार की जरूरत है और हमें एक ईमानदार सरकार की भी जरूरत है। मौजूदा समय में भारत में ईवीएम से वोटिंग की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं। वर्तमान समय में मतदाताओं पर दोहरी जिम्मेदारी है। भारत से ईवीएम प्रणाली को बंद करने की जरूरत है, जो दुनिया में कहीं भी उपलब्ध नहीं है। साथ ही सरकार पर मतपत्र के माध्यम से मतदान करने का दबाव डाल रहे हैं, जैसा कि दुनिया में हर जगह हो रहा है। निर्वाचित सरकार पर कानून में सुधार के लिए उचित बदलाव करने या मतदान को अनिवार्य बनाने के लिए दबाव डालना। गैर-मतदाताओं को सभी नागरिक सुविधाओं से वंचित करना, जैसे गैर-मतदाताओं की रेल यात्रा, हवाई यात्रा, राशन कार्ड, पानी, इंटरनेट पहुंच, बैंक खाता, अदालत तक पहुंच, वाहन, संपत्ति पर प्रतिबंध लगाना. सड़कों पर ड्राइविंग के लिए डबल चार्ज लेना। यानी नाक दबाओगे तो मुंह खुलेगा! तब लोग भी चुनाव में जल्दी वोट देने जाएंगे। जब किसी उम्मीदवार को यह एहसास हो जाता है कि उसे 99 या 100 फीसदी मतदान मिलने वाला है, तो वह अपनी छवि का ख्याल रखेगा। इन सभी संदर्भों में राजनीतिक दलों को भी अपनी जिम्मेदारी का एहसास होगा और वे अपने अंदर उचित सुधार करेंगे। यह संकल्पना मेरे द्वारा 2005 में प्रस्तुत की गई थी, जो यूट्यूब पर उपलब्ध है. जिज्ञासुओं को वह वीडियो अवश्य देखना चाहिए।

इनमें से किसी को भी सुधारना मुश्किल है, लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए मेरे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। यदि आपके पास कोई सुझाव है तो बेझिझक मुझसे संपर्क करें, मुझे चर्चा करना अच्छा लगेगा।

– प्रकाश पोहरे
(संपादक- मराठी दैनिक देशोन्नति, हिन्दी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)
संपर्क : 98225 93921

Latest articles

रेखा-श्रीदेवी तो कॉस्मेटिक ब्यूटी हैं, असली ब्यूटी मैं हूं ,पर ममता कुलकर्णी की सफाई

बॉलीवुड एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी 90 के दशक की खूबसूरत एक्ट्रेस में शुमार है, जिनकी...

टी 20 में इंग्लैंड को तहस-नहस करने के बाद भारत अब वन डे में मचाएगा तूफान

भारत और इंग्लैंड के बीच तीन मैचों के वनडे सीरीज की शुरुआत गुरुवार से...

भारत – इंग्लैंड वनडे क्रिकेट सीरीज में विराट संग रोहित भी बना सकते हैं नए वर्ल्ड रिकॉर्ड

टी 20 क्रिकेट का खुमार अब समाप्त हो गया है।4-1सीरीज जीतने के बाद भारत...

आमिर खान की ‘गजनी 2’ पर बड़ा अपडेट, 1000 करोड़ रुपए का बजट

बॉलीवुड सुपरस्टार आमिर खान साउथ एक्टर नागा चैतन्य और साई पल्लवी की अपकमिंग फिल्म...

More like this

रेखा-श्रीदेवी तो कॉस्मेटिक ब्यूटी हैं, असली ब्यूटी मैं हूं ,पर ममता कुलकर्णी की सफाई

बॉलीवुड एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी 90 के दशक की खूबसूरत एक्ट्रेस में शुमार है, जिनकी...

टी 20 में इंग्लैंड को तहस-नहस करने के बाद भारत अब वन डे में मचाएगा तूफान

भारत और इंग्लैंड के बीच तीन मैचों के वनडे सीरीज की शुरुआत गुरुवार से...

भारत – इंग्लैंड वनडे क्रिकेट सीरीज में विराट संग रोहित भी बना सकते हैं नए वर्ल्ड रिकॉर्ड

टी 20 क्रिकेट का खुमार अब समाप्त हो गया है।4-1सीरीज जीतने के बाद भारत...