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अहंकार छोड़ सद्भावना ही सभी समस्याओं का समाधान

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प्रकाश पोहरे (सम्पादक- मराठी दैनिक देशोन्नति, सम्पादक हिन्दी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)

18 जून को कनाडा के सरे में गोलियों से खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर को मार डाला गया। इसके अलावा इसी हफ्ते सुखदुल सिंह उर्फ ​​सुक्खा की हत्या कर दी गई थी। निज्जर की तरह उसकी भी अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी। जानकारी के मुताबिक यह हत्या गैंगवार के कारण हुई। निज्जर कनाडा में सिख फॉर जस्टिस और खालिस्तानी टाइगर फोर्स का प्रमुख था। खालिस्तानी आतंकी निज्जर पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने दस लाख का इनाम रखा था। अब इस मुद्दे पर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बयान से बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। कनाडाई प्रधानमंत्री का अपनी संसद में यह आरोप कि इस हत्या में भारत का हाथ है, बेहद गंभीर है। इस मामले से दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ गया है।

इससे पहले कनाडा में सिख समुदाय ने ऑपरेशन ब्लूस्टार की 39वीं वर्षगांठ पर ब्रैम्पटन में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाया था। इसके अलावा, इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर उनकी हत्या की तस्वीर वाला एक कवर प्रकाशित किया गया था, जिसका शीर्षक था ‘पापियों के शहीदों का सम्मान’. पत्रिका को सरकारी विज्ञापन मिला और यह कनाडा का अग्रणी समाचार पत्र बन गया। वहीं, अगर कनाडा सरकार पहल करती और कहती कि ऐसी इंडस्ट्री हमारे देश में नहीं चलेगी, तो भविष्य में कोई ऐसा करने का साहस नहीं करता। लेकिन कनाडा सरकार का यह मानकर कि निज्जर की हत्या में भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ का हाथ था, भारत पर दोष मढ़ने की कोशिश बेहद बेतुकी और अनर्गल है।

प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने उक्त आरोप लगाकर गलती की, इसलिए राजनयिक अधिकारियों को बाहर करने का अभियान शुरू हो गया है। कनाडा सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के जवाब में भारत सरकार ने भी ऐसे ही कदम उठाए। हमारी सरकार ने कनाडाई नागरिकों के लिए वीज़ा सेवाओं को अनिश्चित काल के लिए निलंबित कर दिया है। संक्षेप में कहें तो मामला द्विपक्षीय कड़वाहट के कारण तूल पकड़ने लगा है। पिछले कुछ वर्षों में कनाडा, खालिस्तानियों को सशक्त बनाने और उनकी मदद करने का एक वैश्विक केंद्र बन गया है, लेकिन कनाडाई सरकार को भी अभी तक यह एहसास नहीं हुआ है कि एक बार आतंकवाद का ऊंट उसके घर में प्रवेश करेगा, तो उसे बहुत महंगा पड़ेगा।

जब अमेरिका और पाकिस्तान ने गलती की, तो उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी थी। भारत ने राजीव गांधी और इंदिरा गांधी की हत्या के रूप में इसकी भारी कीमत चुकाई है। जिस संगठन ने अपने ही देश के प्रधानमंत्री की हत्या की हो, वह संगठन कनाडा सरकार को किसी भी वक्त मुसीबत में डाल सकता है। खालिस्तानी संगठन को भारत सरकार ने समय रहते रोक दिया है। लेकिन अगर यह संगठन किसी दूसरे देश में भारत विरोधी गतिविधियां कर रहा है, तो हमारे देश की अपनी कुछ सीमाएं हैं। अगर कल को कनाडा के आतंकवादी भारत आ कर रहने लगे और यहां की सरकार उनकी मदद करे, तो कनाडा सरकार को कैसा लगेगा? अब कनाडा सरकार ने जम्मू-कश्मीर जाने वाले अपने नागरिकों को वहां न जाने की चेतावनी दी है। इसका क्या मतलब है? जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खतरे का हवाला देते हुए कनाडाई नागरिकों को जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ लद्दाख की यात्रा न करने की हिदायत देते हुए एक पर्चा जारी किया गया है। भारत ने भी कनाडा में अपने नागरिकों को चेतावनी दी है। इसमें कनाडा सरकार को किस बात का गौरव है?

खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार के एजेंटों पर ‘संलिप्तता’ का आरोप लगाने वाले कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने अपने देश की संसद में उक्त आरोप लगाया, जिसे भारत सरकार ने गंभीरता से लिया। कनाडा की धरती से भारत के खिलाफ भड़काने वाले खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई करने के भारत सरकार के आह्वान को कनाडा ने हमेशा नजरअंदाज किया है। अब भारतीय नागरिकों के साथ-साथ उस देश की यात्रा करने की सोच रहे लोगों को भी दस बार सोचना होगा। भारत से कई युवा रोजगार और शिक्षा के लिए कनाडा चले गए हैं। उनके परिवार चिंतित हैं, क्योंकि कनाडा में सुरक्षित माहौल बिगड़ता नजर आ रहा है।

कनाडा में दो लाख तीस हजार भारतीय छात्र हैं, कनाडा में सात लाख अनिवासी भारतीय भी हैं। अब कनाडा में भारतीय नागरिकों और छात्रों को ओटावा या टोरंटो में उच्चायोग के साथ-साथ वैंकूवर में भारतीय दूतावास की वेबसाइट या एमएडीएडी पोर्टल पर अपना पंजीकरण कराना होगा। सरकार ने ऐसी नीति बनाई है कि अगर भविष्य में उन पर कोई संकट आएगा, तो भारत सरकार तुरंत उनसे संपर्क कर सकेगी। ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका में कुछ सिख संगठन अभी भी वित्तीय और सैन्य सहायता देकर इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। हालाँकि कनाडा सीधे तौर पर खालिस्तान आंदोलन का समर्थन नहीं करता है, लेकिन कनाडा को खालिस्तान समर्थकों और भारत में आतंकवाद के आरोपियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह माना जाता है। चूंकि कनाडा में सिख समुदाय भारी संख्या में है, इसलिए सिख आंदोलन वहां तेजी से फैल गया। कनाडा के बाद अमेरिका और ब्रिटेन में भी बड़ी संख्या में सिख समुदाय रहते हैं। खालिस्तान आंदोलन को लेकर फिलहाल इन दोनों देशों में माहौल शांत है, लेकिन यह कहना साहसपूर्ण होगा कि इस आंदोलन का कोई समर्थक नहीं है। लेकिन चाहे कनाडा का सिख हो या भारत का सिख, कोई भी ‘नया भिंडरावाले’ नहीं बनना चाहता। अगर ऐसा हुआ, तो यह सिख समुदाय और भारत के लिए भी उचित नहीं होगा।

मूलतः खालिस्तानी, नक्सलवादी, बोडो जैसे उग्रवादी आन्दोलन का निर्माण क्यों हुआ? इस पर चर्चा होनी जरूरी है। ये और ऐसे अनेक आंदोलन, जिनमें विदर्भ, मिथिला, पूर्वांचल, पश्चिमांचल, बुन्देलखंड, सौराष्ट्र, गोरखालैंड, रायलसीमा, मालवा, कच्छ, भुज आदि के अलावा कई राज्यों की मांग पिछले 50-60 वर्षों से स्थानीय नेतृत्व द्वारा की जाती रही है। जबकि विदर्भ जैसे प्रांत में यह मांग 100 से अधिक वर्षों से की जा रही है। इस आंदोलन में स्थानीय लोगों और पुलिस की ताकत बर्बाद हो रही है। ध्यान देने वाली बात यह है कि ये आंदोलनकारी एक अलग राज्य की मांग कर रहे हैं, अलग देश की नहीं! कहां ये आंदोलन लोकतांत्रिक रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं, जबकि कहां उन्होंने हिंसा का रास्ता अपना लिया है। स्थानीय मुद्दों की उपेक्षा, असंतुलित विकास, धार्मिक मुद्दों की उपेक्षा और सबसे महत्वपूर्ण किसानों का शोषण इस आंदोलन की जड़ में है।

जैसा कि मैंने कुछ अरसे पहले ‘नक्सलवाद का पितृत्व सरकार के साथ’ शीर्षकयुक्त लेख में लिखा था कि इसके लिए समन्वय की कमी ही जिम्मेदार है। सबसे पहले, यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि इन मुद्दों को दोनों पक्षों की हाथापाई या बंदूक के बल पर हल नहीं किया जा सकता है।

कुछ वर्ष पहले भिंड, मुरैना क्षेत्र में डाकू बढ़ गए थे, उनकी जड़ों में भी अन्याय, अत्याचार थे। अंततः डाकुओं ने आत्मसमर्पण कर दिया और सरकार ने भी हत्या, लूटपाट माफ कर उन्हें मुख्य धारा में वापस ला दिया। बाद में उन्हीं में से फुलनदेवी बाद में संसद पहुंचीं। ‘गोली का जवाब गोली से कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं करेगा। संचार और चर्चा किसी भी समस्या का समाधान है, लेकिन अहंकार को दूर करने के लिए विनम्रता की आवश्यकता होती है और आज इसी का अभाव है।

-प्रकाश पोहरे
(सम्पादक- मराठी दैनिक देशोन्नति, सम्पादक हिन्दी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)
संपर्क : 98225 93921

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