
हाल ही में सरकार ने चावल निर्यात पर प्रतिबंध और प्याज निर्यात पर 40 प्रतिशत निर्यात कर लगाया है। ये दोनों ही निर्णय किसानों के प्रति द्वेषपूर्ण है। इससे इस देश के राजनेता और शहरी नागरिक यही कहना चाहते हैं कि- ‘आप सभी जहरीला भोजन खाने के हकदार हैं। क्योंकि टोल, शराब, ट्रिप-टूर, पार्टियां, होटल, वीकेंड, कपड़े, सैलून, हेयर स्टाइल, फेशियल, ब्यूटी पार्लर, चप्पल, जूते, चीनी, फास्ट फूड, चाय, ब्रेड-पाव आदि सब कुछ बिना सौदेबाजी के शहर के लोग खरीदते हैं, लेकिन अगर कृषि या किसान द्वारा उत्पादित अनाज, सब्जियां, प्याज, टमाटर, फल के साथ-साथ दूध, दही, अंडे जैसी वस्तुओं की कीमत बढ़ती है, तो वोटों के लिए बेचैन सरकार विदेशों से अनाज, प्याज, टमाटर आयात करती हैं।’ इसलिए किसान अब किसी की बात सुनने के मूड में नहीं हैं।
पहले उनके घर की गोबर फैक्ट्री दुनिया की सबसे अच्छी प्राकृतिक खाद फैक्ट्री थी। लेकिन सरकार और तथाकथित कृषि विशेषज्ञों ने ध्यान दिया और रासायनिक उर्वरकों और यूरिया का उपयोग शुरू कर दिया। अपनी आय दोगुनी करने के लिए उन्होंने सबसे पहले अपनी बचत ख़त्म की और अपना कर्ज़ चार गुना कर लिया।
अब आपके घर की प्रत्येक सब्जी जहरीली है
कीड़ा और आप… एक साथ मरने लगे हैं। पंजाब-हरियाणा से आने वाली कैंसर ट्रेन के लिए भी किसान जिम्मेदार नहीं, बल्कि आप मुफ्तखोर जिम्मेदार हैं! क्योंकि आपको मुफ़्त में अधिक एवं सस्ती सब्जियाँ और अनाज चाहिए। लेकिन इसी दौरान आप जो अन्य काम भी करते हैं, जैसे मोबाइल डेटा, पेट्रोल, डीजल, पिज्जा बर्गर, कोल्ड ड्रिंक, दवा, जहर, सोना, चांदी की कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहते हों!
सरकार ने किसानों को मुफ्त देने के लिए पहले हाइब्रिड और फिर जीएम बीज लाए, इसलिए उनका दिमाग खराब हो गया। किसान अपने पास मौजूद सोना यानी ग्रामीण बीज भूल गया और अपना पीतल भूल गया।
देशी प्रजातियाँ अब पूरी तरह विलुप्त हो चुकी हैं। हाइब्रिड या ट्रांसजेनिक सब्जियां घास की तरह आती हैं, कुछ रुपये में खरीदी जाती हैं और बाकी उसे फेंकना पड़ता है। कुछ भी मुफ़्त नहीं मिलता।
वे कहते हैं कि वे किसानों की आय दोगुनी कर देंगे,अरे भाइयों, उसके खेत, दूध का उचित बाजार मूल्य दो..! इससे आय अपने आप दोगुनी हो जाएगी।
किसान पूरी दुनिया का बोझ उठाने को तैयार है,लेकिन उसे कुछ सहारा दो। यदि तुम उसका खून ही पी लोगे, तो वह किसी भी समय मर जायेगा। फिर भी सारा ज्ञान उसे ही सिखाया जाता है।
जिनके पिता भी ठीक से नहीं जानते कि उकिरडा का मतलब क्या होता है, वे भी अब किसानों को जैविक खेती का महत्व बताने लगे हैं!
जो सच्चा खानदानी किसान होता है, वही जानता है कि देसी (गावरान) गाय कितना दूध देती है? और कितनी लातें मारती हैं..? देसी (गावरान) गाय का दूध उसके बछड़े के लिए पर्याप्त नहीं होता, ऐसे में कितना घी निकाला जाए और कितना दूध बेचा जाए? ये सवाल उठता है। 30 लीटर दूध से 1 लीटर घी प्राप्त होता है। ऐसे में अब बताओ कि उसने दूध को कितने रुपये प्रति लीटर की दर से बेचना चाहिए?
ये कारनामा कर दिखाया है रामदेव बाबा ने जर्सी या हॉलिस्टन गाय या वसा के घी को वे ‘गाय का देसी घी’ के रूप में बेचते हैं। लेकिन जो कोई भी ‘गाय का देसी घी’ और ‘देसी गाय शुद्ध घी’ की बारीकियों को समझता है, उससे पूछें कि दोनों में क्या अंतर है!
ऐसा नकली घी और ‘सोने जैसे गेंहू का आटा” खाकर आप और आपके बच्चे बीमार रहने लगे हैं, इसलिए आपके सामने जैविक खेती शुरू कर दी गयी है।
जाओ, किसानों के खेत पर जाओ..! जैसे आप किसी मंदिर में जाकर भगवान को, पंडों को, पुजारी को दान देते हैं, उसी तरह किसानों को भी (उसके पसीने की कीमत) दान दीजिए, क्योंकि वही आपका सच्चा अन्नदेवता है। खेती ही आपका और उनका मंदिर है..!
आप अपना किसान देवता चुनें, क्योंकि जैसे पुजारी भगवान के नाम पर मलीदा (प्रसाद) का जाप करता है, उसी तरह किसान के नाम पर मलीदा, लगान खाने वाले एपीएमसी दलाल, सूदखोर भी कम नहीं हैं! किसान से कहो कि हम तुम्हें तुम्हारा खर्चा देंगे, तुम्हारा हक का पैसा देंगे, तुम अच्छी फसल उगाओ! फिर देखिये कि विषमुक्त अन्न पकता है या नहीं..?
उसे केवल सामान्य ज्ञान न सिखाएं। वह भी अच्छे-बुरे को समझता ।
आपकी थाली में आनेवाली फलों और सब्जियों पर कीटनाशक छिड़कने की उसकी कोई जानबूझकर इच्छा नहीं है।
वे आप ही थे, जिसने उसे कर्ज में डूबकर आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया। अब उसके बच्चों को कौन खिलाएगा? कौन पोसेगा-पालेगा..?
अधिक आय के लिए हाइब्रिड बीज कौन लाया..? उसे कीट-रोग भी किसने दिये? बीमारियों और कीटों की दवा का प्रयोग करते-करते किसान खुद मरने लगा, इसका जिम्मेदार कौन है..?
लोगों, अब आंखें खोलो और किसान को उसका हक दो। वो तुम्हें भरभरा कर देगा।
लगातार तीन साल तक आसमानी व सुल्तानी संकट….
(1) कोविड काल
(2) बेमौसम अकाल वर्षा
(3) ओलावृष्टि….
इस अवधि में किसानों और कृषि के लिए केंद्र/राज्य सरकार से शून्य मदद..! बताइए…
कौन, कहां गलत हो रहा है..?
इन सबके बाद भी अब सरकार ने चावल निर्यात बंद कर दिया है, प्याज निर्यात पर 40 प्रतिशत टैक्स लगा दिया है। क्या इससे चावल और प्याज की कीमत नहीं गिर जायेगी? इसे किसान-द्रोही अर्थात देश-द्रोही न कहें, तो क्या कहें?
सरकार ने ये फैसले आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए लिए हैं। इससे देश में कीमतें गिरनी तय है। अब इन शासकों को हटाए बिना किसान बच नहीं सकते।
फिलहाल विदर्भ में पिछले 100 दिनों में 1400 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। यानी प्रतिदिन 14 किसान आत्महत्या कर रहे हैं…!
सरकार तो विधायकों का अपहरण कर गठबंधन बनाने में व्यस्त है। इसलिए हमें ही अपनी सफाई खुद ही करनी होगी।
अपनी किस्मत बदलने के लिए एक साल से भी कम समय है। अगर आप अभी से तैयारी शुरू कर देंगे, तो कुछ उम्मीद है। अन्यथा मरने के लिए तैयार रहें, बस यही चेतावनी है। भविष्य में मुझे दोष न दें! अनुग्रह लोभ है, इसे कायम रखियेगा।
– प्रकाश पोहरे
(सम्पादक- मराठी दैनिक देशोन्नति, हिन्दी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)
संपर्क: 98225 93921