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शहर में खोदो और निर्माण करो, ग्रामीण क्षेत्रों में घूमो और वादे करो!

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– प्रकाश पोहरे (संपादक, दैनिक देशोन्नति, दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति) 

मुंबई और ठाणे इलाकों में पहले से ही भीड़भाड़ वाली सड़कों पर 2014 से कई मेट्रो लाइनों का कार्य निर्माणाधीन हैं। सड़क पर पिलर खड़े किए जा रहे हैं। इस निर्माण से सड़क पर यातायात व्यवस्था की हालत बेहद खराब हो रही है।

1995 में, महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना सरकार सत्ता में आई और खुदाई और निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई। इसकी शुरुआत मुंबई के फ्लाईओवर, मुंबई-पुणे राजमार्ग से हुई और इसके बाद पुणे, नागपुर शहरों में सीमेंट सड़कों के निर्माण कार्यक्रम शुरू हुए। वह विकास के नाम पर। कांग्रेस ने आज तक कोई विकास कार्य नहीं किया, इसका दिखावा कर भाजपा ने अलग विदर्भ का सपना भी दिखाया और विदर्भ से 49 सीटें जीत लीं, लेकिन सरकार आने के बाद अलग विदर्भ के वादे को पूरी तरह से भूलकर मुंबई, ठाणे क्षेत्र में 14 मेट्रो लाइनों की न केवल घोषणा की, बल्कि इन सभी का काम शुरू हुआ। इसलिए महाराष्ट्र के इन दोनों जिलों में 2014 से लगभग हर महत्वपूर्ण, भीड़भाड़ वाले स्थान पर एलिवेटेड या भूमिगत मेट्रो का काम चल रहा है।

इसकी शुरुआत सबसे पहले 1995 में सेना-बीजेपी ने की थी। बाद में कांग्रेस, एनसीपी सरकारों ने बांद्रा-वर्ली सी लिंक और फ्लाईओवर बनाकर उसी परंपरा को जारी रखा। 2008 में, मुंबई की पहली मेट्रो घाटकोपर और वर्सोवा के बीच जोड़ी गई थी। यह मेट्रो रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी का संयुक्त उद्यम है।

अनिल अंबानी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के अध्यक्ष हैं! और ये महाशय इस वक्त लगभग दिवालिया हो चुके हैं।

घाटकोपर से वर्सोवा मेट्रो का निर्माण कार्य फरवरी 2008 में शुरू हुआ था। मई 2013 में एक सफल परीक्षण आयोजित किया गया था और सिस्टम की पहली लाइन 8 जून 2014 को चालू की गई थी, क्योंकि परियोजना के कुछ पहलू देरी और लागत के मुद्दों से ग्रस्त थे। इसी समय मोनो रेल प्रारम्भ हुई। उसमें भी कई गड़बड़ियां थीं। 2014 में एक साथ घोषित तेरह मेट्रो में से दो मेट्रो शुरू हो चुकी हैं। नवी मुंबई मेट्रो का उद्घाटन इसी सप्ताह प्रधानमंत्री करेंगे और यह इस साल के अंत तक चलनी शुरू हो सकती है।

मुंबई और ठाणे क्षेत्र में कुल सोलह मेट्रो नेटवर्क हैं, जिनमें से मुंबई में केवल तीन लाइनें शुरू की गई हैं। मोनोरेल चौथा! इसका मतलब है कि सोलह में से केवल चार पर काम चल रहा है और शेष बारह के इस साल के अंत तक और इस दशक के अंत तक चरणों में पूरा होने की उम्मीद है! इसका मतलब यह है कि 1995 में शुरू हुई सड़कों और राजमार्गों को ‘खोदो और बनाओ’ की नीति 2023 के बाद भी जारी रहेगी।

आज मुंबई और ठाणे दोनों जिलों की कुल आबादी लगभग तीन करोड़ है। 2031 की जनगणना में यह आबादी चार करोड़ के आसपास दिखे, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए । बेशक, चार करोड़ की आबादी के लिए मुंबई का परिवहन बुनियादी ढांचा छोटा पड़ेगा। इसलिए इसे बढ़ाना होगा। सरकार का यही विचार है, और इसलिए सभी लोकल ट्रेनों को फिलहाल एसी बनाने की घोषणा की गई।

बीजेपी अपने उद्घाटन, समाचारों के माध्यम से शहरी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे पर अप्रत्याशित धन खर्च करके लोगों को यह प्रभावित करने की कोशिश कर रही है कि कैसे हम ही शहरी क्षेत्र के रक्षक हैं।

वर्तमान में चालू लाइन 1 से परे मेट्रो प्रणाली के विस्तार के लिए कुल वित्तीय परिव्यय 82,172 करोड़ रुपए (1.2 ट्रिलियन रु. या 2023 में 14.43 बिलियन डॉलर के बराबर) है, जिसे इक्विटी और द्विपक्षीय, बहुपक्षीय मिश्रण के माध्यम से वित्त पोषित किया जाएगा। एकाधिक के रूप में। यह कीमत सिर्फ मुंबई, ठाणे में है। इसमें अगर पुणे, नागपुर मेट्रो की लागत को ध्यान में रखा जाए, तो घाटकोपर-वर्सोवा, पहली मेट्रो, मोनोरेल, यह राशि दोगुनी हो सकती है। राज्य सरकार महानगरों पर तो अत्यधिक ध्यान दे रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की उपेक्षा कर रही है। शहरों को जोड़ने के लिए छह, आठ लेन की सड़कें बनाई जाती हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में एक साधारण पक्की सिंगल सड़क तक नहीं है। महानगरों में तो वातानुकूलित मेट्रो शुरू हो जाती है, लेकिन ग्रामीण इलाकों तक महाराष्ट्र की लाल परी भी नहीं पहुंच पाती। जहां शहरों-महानगरों में बड़े-बड़े पाइपों के जरिए पानी की आपूर्ति की जा रही है, वहीं ग्रामीण इलाकों में किसानों को अपनी फसलों के लिए सिंचाई जल के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। विकास लाते समय यह संतुलित नहीं दिखता। गोसीखुर्द परियोजना अभी भी कछुआ गति से आगे बढ़ रही है। अन्य परियोजनाओं का अब तो जिक्र ही नहीं होता। बात सिर्फ इतनी नहीं है कि वह घनी आबादी वाले शहरी इलाकों में विकास का जाल फैलाने और खूब वोट हासिल कर अपनी सीट पक्की करने का दावा करते हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में वह सिर्फ बड़े-बड़े वादे करते हैं और उन्हें कभी पूरा नहीं करते।

सरकार की नीति मुंह से बोल कर भाग जाने की है। यह सब ग्रामीण इलाके के लोग देख रहे हैं। जिस दिन से ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों, विशेषकर युवाओं को ये सभी अंतर समझ में आ जायेंगे या समझा दिये जायेंगे, उसी दिन से क्रांति या उद्रेक शुरू हो जायेगा!

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प्रकाश पोहरे
(संपादक, दैनिक देशोन्नति, दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)
संपर्क : 98225 93921
2prakashpohare@gmail.com

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