

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए बुनियादी ढांचा महत्वपूर्ण है। जितनी अच्छी सड़कें, सिंचाई, पीने का पानी, सीवरेज की निकासी, प्राथमिक शिक्षा, रोजगार, आर्थिक सुविधाएं, स्वास्थ्य सुविधाएं उतना ही बेहतर ग्रामीण जनता का स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था! इन सुविधाओं को उपलब्ध कराना सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है। इस कसौटी पर आज का महाराष्ट्र और पूरा देश कहां है?
महाराष्ट्र और देश में राजनीतिक माहौल अलग तरह का है। जातिगत अस्मिता, भाषायी अस्मिता, धर्म की राजनीति में विकास फंसा हुआ है। सड़क, पानी, स्कूल, स्वास्थ्य, रोजगार और आर्थिक स्थिति से ज्यादा अगर उनके अहम और उनके अपने वैचारिक एजेंडे महत्वपूर्ण लगेंगे, तो सारे सवाल ही गुम हो जाएंगे! ग्रामीण अधोसंरचना के मामले में महाराष्ट्र की स्थिति, उत्तरप्रदेश और बिहार से भी बदतर है। केरल, गुजरात, तमिलनाडु, तेलंगाना के करीब भी यह राज्य नहीं आता। बुनियादी ढांचे के मामले में, ग्रामीण महाराष्ट्र देश में अठारहवें स्थान पर है। महाराष्ट्र में बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर वाला कोल्हापुर जिला देश में 222वें नंबर पर आता है। बछड़ों में लंगड़ी गाय के चतुर होने की तरह केवल पश्चिमी महाराष्ट्र ही विदर्भ और मराठवाड़ा से आगे है। लेकिन यह संभाग भी गुजरात, केरल आदि की तुलना में पिछड़ा हुआ ही है। विदर्भ कम से कम पश्चिम में महाराष्ट्र को देखता है, लेकिन पश्चिमी महाराष्ट्र अपनी ही छवि को लेकर चिंतित है। इतनी गिरावट चल रही है, लेकिन फिर भी महाराष्ट्र मजे (?) में है। यह राजनीतिक लोगों और नौकरशाही के संयुक्त ‘प्रदर्शन’ के वर्षों का परिणाम है।
महाराष्ट्र में किसानों को केवल 8 घंटे बिजली दी जाती है। उसमें दिन में 3 बार और रात में 3 बार, एक दिन की छुट्टी और जो होता है वह भी सुचारू रूप से नहीं होता है। इसलिए काफी सारी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। बिजली आपूर्ति बाधित होने से कभी मोटर जल जाती है, पाइप लाइन फट जाती है, तो कभी करंट लगने से किसान की मौत हो जाती है। चूंकि वाणिज्यिक उद्योगों को दिन के दौरान आपूर्ति करने की आवश्यकता होती है, किसानों को दिन और रात दो चरणों में बिजली की आपूर्ति की जाती है और यह पिछले 20-25 वर्षों से हो रहा है। महाराष्ट्र सरकार पैसा लेकर भी यहां 8 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति नहीं कर सकती, लेकिन देश में कुछ राज्य ऐसे भी हैं, जहां किसानों को 24 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति की जाती हैं, वह भी मुफ्त में! इन्हीं राज्यों में से एक है तेलंगाना!
2 जून 2014 को तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग करके भारत के उनतीसवें राज्य के रूप में बनाया गया था। यहां तेलंगाना राष्ट्र समिति पार्टी पिछले आठ साल से सत्ता में है और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव उस राज्य के लोकप्रिय नेता हैं। के. चंद्रशेखर राव के सुझाव के अनुसार तेलंगाना में लागू की गई कल्याणकारी योजना का पूरे देश में प्रचार किया जा रहा है। तेलंगाना राज्य बनने से पहले इस क्षेत्र की स्थिति खराब थी। लेकिन अब यहां समृद्धि है। तेलंगाना सरकार ने किसानों को परेशान करने वाले तलाठियों को बर्खास्त कर दिया है। अब वहां कोई तलाठी नहीं है। कई योजनाओं की घोषणा की गई है। किसानों को पैसा लेने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ते, बल्कि वह सीधे खाते में जमा होते हैं। जो तेलंगाना कर पाया वो महाराष्ट्र में क्यों नहीं हो सकता..? इसका विचार करने के लिए कई कारक हैं। अब देखिए तेलंगाना सरकार वहां के लोगों को क्या दे रही है।
1. किसानों को 24 घंटे मुफ्त बिजली और पानी।
2. बुवाई के लिए 10,000 रु. प्रति एकड मदद।
3. नदी जोड़ो परियोजना के कारण शत-प्रतिशत क्षेत्र सिंचाई के अंतर्गत लाया गया।
4. किसान की मृत्यु (चाहे आकस्मिक या प्राकृतिक) के मामले में परिवार को 5,00,000 रु. बीमा के माध्यम से तत्काल सहायता।
5. सरकार ही पूरा धान खरीदती है।
7. शेतकारी मंच योजना के माध्यम से एक स्वतंत्र कृषि अधिकारी 5000 एकड़ के समूह के लिए काम करता है।
8. कल्याण लक्ष्मी और शादी मुबारक योजना के तहत लड़कियों की शादी के लिए 1,00,000 रु. बिना किसी शर्त के तत्काल सहायता।
9. वरिष्ठ नागरिकों और एकल महिलाओं को 2000 प्रति माह पेंशन।
10. विकलांगों के लिए 3000 प्रति माह पेंशन।
11. 2 बेडरूम व रसोई वाला घर गरीब और जरूरतमंद लोगों को 100 प्रतिशत अनुदान पर दिया जाता है। (3 लाख से अधिक लोग लाभान्वित)
12. दलित और आदिवासी उद्यमियों के लिए प्रोत्साहन योजना (अब तक 47,080 उद्यमियों को 2,139 करोड़ वितरित)
13. दलितों के लिए प्रति परिवार 10 लाख रु. बिना रिफंड के एकमुश्त भुगतान किया जाता है। (2021-22 में 29,700 लाभार्थी और 2022-23 में 1,75,000 लाभार्थी)
14. धनगर बंधुओं को पालने के लिए मुफ्त भेड़ें बांटी जाती हैं।
15. मिशन भागीरथ के तहत कृषि और नल की सिंचाई के लिए प्रचुर मात्रा में पानी, पीने के लिए हर घर में स्वच्छ और प्रचुर मात्रा में पानी।
16. गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए मुफ्त परिवहन और सभी स्वास्थ्य सुविधाएं। बच्चे के जन्म के बाद 12,000 रु।, वहीं लड़की के जन्म के बाद 13,000 रु. उनके पालन-पोषण के लिए दिए जाते हैं।
17. कंटी वेलमु ने दुनिया का सबसे बड़ा नेत्र विज्ञान शिविर आयोजित किया।
18. अपना गांव अपनी शिक्षा योजना को लागू कर शिक्षा पर ध्यान दिया गया।
इस प्रकार, तेलंगाना एक समृद्ध राज्य बन गया है। किसानों की समृद्धि होने के कारण आत्महत्या दर में बहुत कमी आई है।
महाराष्ट्र राज्य प्राकृतिक रूप से समृद्ध है। उपरोक्त सभी चीजें महाराष्ट्र में आसानी से हो सकती हैं, लेकिन नेताओं ने लोगों को देने के बजाय केवल अपनी जेबें भर लीं।
2012-13 के दौरान देश ऐसे ही एक गुजरात मॉडल से प्रभावित हुआ था। उस समय लोग प्रभावित थे कि गुजरात राज्य में योजनाएं अन्य राज्यों के लिए एक मार्गदर्शक थीं और वे मोदी की राष्ट्रीय छवि बनाने में सफल भी रहे। लेकिन इससे पैदा हुए संकटों का दुष्परिणाम अब पूरा देश भुगत रहा है। गुजरात मॉडल की अवास्तविक चर्चा के कारण, हमने अपने पड़ोसी राज्य तेलंगाना में जो हो रहा है, उसकी उपेक्षा की है। हालांकि अब के. चंद्रशेखर राव जब से महाराष्ट्र आने लगे हैं, तभी से उनके तेलंगाना मॉडल की चर्चा शुरू हो गई है। केसीआर अपने तेलंगाना मॉडल को बंगारू तेलंगाना यानी सोने का तेलंगाना कहते हैं और उन्होंने इसके लायक काम भी करके दिखाए हैं।
आंध्र प्रदेश से आठ साल पहले एक स्वतंत्र राज्य के रूप में तेलंगाना राज्य की स्थापना के बावजूद, आंध्र प्रदेश की तुलना में तेलंगाना का बुनियादी ढांचा, इसका आईटी हब, बड़ी संख्या में अनुसंधान संगठन, सस्ती अचल संपत्ति के साथ-साथ उद्यमी अनुकूल नीतियां बहुत अच्छी हैं। इसके साथ ही आईटी हब के रूप में भी तेलंगाना का बहुत बड़ा नाम है। एपल, अमेज़ॉन और माइक्रोसॉफ्ट के भी हैदराबाद में अपने प्राथमिक कार्यालय हैं। साथ ही साइबर टावर और हाईटेक सिटी के चलते आईटी कंपनियां फिलहाल हैदराबाद को तरजीह दे रही हैं।
लाभदायक और टिकाऊ कृषि का तेलंगाना मॉडल आज पूरे देश का मार्गदर्शन कर रहा है। तेलंगाना में आत्मनिर्भर किसान की तस्वीर कुछ और ही कहानी कहती है। तेलंगाना राज्य के गठन से एक दशक पहले कृषि पर लगभग 7,994 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, जनवरी 2023 तक केसीआर सरकार बीस गुना यानी 1,91,612 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी थी। विशेष रूप से 2015-16 से 2021-22 तक कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में देश की विकास दर चार प्रतिशत थी, जबकि तेलंगाना में यह 7.4 प्रतिशत पर रही। राज्य ने 2014-15 में 68.17 लाख मीट्रिक टन धान का उत्पादन किया। जबकि 2021-22 में यह तीन गुना बढ़कर 2.2 करोड़ मीट्रिक टन हो गया है। तेलंगाना आज देश के लिए अन्नपूर्णा भंडार बन गया है। वास्तव में महाराष्ट्र तेलंगाना से अधिक मजबूत राज्य है, तो फिर महाराष्ट्र में किसानों की हालत इतनी खराब क्यों होनी चाहिए? जनवरी से अगस्त 2022 तक 8 महीनों के दौरान, महाराष्ट्र में 1875 किसानों ने आत्महत्या की। यानी राज्य में हर दिन कम से कम आठ किसानों की जान गई। जबकि तेलंगाना में, किसान आत्महत्या अब कोई मुद्दा ही नहीं है। ऐसे में कम संसाधनों वाला तेलंगाना अगर नौ साल से भी कम समय में इतना कुछ बदल सकता है, तो महाराष्ट्र में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? महाराष्ट्र के शासकों को इस पर विचार करना चाहिए।
स्वतंत्र राज्य की स्थापना के बाद मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में तेलंगाना ने सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मा और बायोटेक, इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक वाहन, एयरोस्पेस, रक्षा, कपड़ा, बुनियादी ढांचे आदि में प्रगति की है, जिसने दुनिया को आकर्षित किया है। कृषि के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व क्रांति हुई है।
‘धरणी पोर्टल’ के माध्यम से किसानों को तुरंत भूमि निबंधन और नाम निबंधन जैसी सुविधाएं मिलने लगीं है। केसीआर सरकार ने राज्य में भूमि रिकॉर्ड पुनरुद्धार और डिजिटलीकरण प्रक्रिया को सरल बनाया। इससे जमीन संबंधी विवाद कम हुए।
लेकिन हमारे राज्य में कहां ले जाकर छोड़ दिया गया है महाराष्ट्र मेरा? ऐसा सवाल बार-बार उठता है। पिछली आधी शताब्दी में महाराष्ट्र के सार्वजनिक जीवन का आकलन करते समय एक बात बहुत स्पष्ट होती है कि जिस सत्याग्रही-समाजवादी भावना से महाराष्ट्र का निर्माण हुआ, वह अगले दो दशकों में समाप्त हो गया। स्वतंत्रता आंदोलन से निकले नेतृत्व को लगा कि महाराष्ट्र का भविष्य सार्वजनिक जीवन में नैतिकता के मूल्यों पर आधारित होना चाहिए। सत्ता के त्याग के माध्यम से सार्वजनिक जीवन जीने का आदर्श, सत्ता, धन और प्रतिष्ठा पर लोगों के संग्रह की प्राथमिकता।
संयुक्त महाराष्ट्र के निर्माण के बाद जो मुंबई, मराठवाड़ा और विदर्भ को मिलाकर बना था, अलग ‘वार्षिक बजट’ (बजट) शुरू हुआ. पिछले छह दशकों से हर साल विधायिका में बजट पेश किया जाता रहा है। उससे कुछ दिन पहले पिछले वर्ष की ‘वित्तीय सर्वेक्षण रिपोर्ट’ प्रस्तुत की जाती है। इसमें वास्तव में क्या हासिल किया गया है और क्या बचा है? इसका लेखा-जोखा होता है। पिछले 60 वर्षों की ‘आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट’ का अध्ययन करें, तो महाराष्ट्र ने किन क्षेत्रों में कितनी प्रगति की है, यह देखने के बजाय पहली तस्वीर दिमाग में आती है कि इसकी कितनी अधोगति हो गयी है!
1 मई 2023 को महाराष्ट्र राज्य 63 साल का हो गया। महाराष्ट्र में समाज-नीति, राजनीति, अर्थव्यवस्था, साहित्य, संस्कृति, धर्म, कला, संगीत, वास्तुकला, नाटक, शिक्षा, ज्ञान, आंदोलन आदि कई क्षेत्रों में गौरवशाली इतिहास का खजाना था। हालांकि, वर्तमान स्थिति ऐसी है कि महाराष्ट्र के लोकाचार से प्रगतिशीलता गायब होती जा रही है। आर्थिक और सामाजिक विकास अवरूद्ध हो गया है। किसानों के अनसुलझे मुद्दों से लेकर महिला सुरक्षा के मुद्दों तक, क्षेत्रीय विवादों से लेकर भाषा के विवादों तक और सीमा के मुद्दों से लेकर नदी के पानी के विवादों तक, महाराष्ट्र कई समस्याओं का सामना कर रहा है। महाराष्ट्र की 63 साल की गौरवशाली सफलता के गौरवशाली गीत गाते हुए न तो किसान के आंसू भुलाए जा सकते हैं और न ही महाराष्ट्र की अनेक समस्याओं से मुंह मोड़ा जा सकता है। इन सवालों का सामना करते हुए आज का महाराष्ट्रीयन समाज भ्रमित है। दूसरी ओर, दलगत राजनीति में सत्ता के लिए अत्यधिक होड़ और भ्रष्ट राजनीति की ज्यादतियों के कारण महाराष्ट्र का सार्वजनिक जीवन दूषित हो गया है। डॉ. भाऊसाहेब पंजाबराव देशमुख, यशवंतराव चव्हाण, वसंतदादा पाटिल का अखंड महाराष्ट्र का सपना देखना है, तो इन विसंगतियों को जल्द से जल्द दूर करना होगा।
संयुक्त महाराष्ट्र के निर्माण के बाद यानी 1 मई 1960 से 2022-23 तक, जनसंख्या में 183 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और राज्य की आय में 1040 गुना वृद्धि हुई है। यद्यपि आय में यह वृद्धि कृषि, उद्योग और सेवाओं जैसे तीन क्षेत्रों में हुई है, अनुपात 1:313:283 है. इसका अर्थ है कि कृषि से होने वाली आय में केवल 1 गुना वृद्धि हुई है, जबकि उद्योग और सेवाओं से होने वाली आय में क्रमश: 313 और 283 गुना वृद्धि हुई है। इसका सीधा सा अर्थ है कि पिछले 63 वर्षों में राज्य सरकारें कृषि से आय बढ़ाने में विफल रही हैं। अगर ऐसा है तो इसका क्या अर्थ निकाला जाए? क्योंकि अभी भी राज्य में 64 फीसदी लोग कृषि पर निर्भर हैं। यानी जिस सेक्टर का कोई आय-विस्तार नहीं है और जिस पर देश की ज्यादातर आबादी अपनी रोजी-रोटी कमाती है, अगर वह सेक्टर कृषि न होकर किसी निजी कंपनी का ‘प्रोडक्ट पोर्टफोलियो’ होता, तो अब तक सब मुश्किल में पड़ गए होते। लेकिन कृषि क्षेत्र को किसी तरह आगे बढ़ाया जा रहा है, क्योंकि शुद्ध खाद्य उत्पादक क्षेत्र और पूरे महाराष्ट्र के चूल्हे इस पर जलते हैं।
आज पूरी स्थिति हमारी आंखों के सामने है। तो तेलंगाना जो पिछड़ा राज्य था, उसमें जो संभव हुआ, वह महाराष्ट्र में क्यों नहीं हो सकता..? सत्ताधारियों को इस पर विचार करने की जरूरत है।
–प्रकाश पोहरे
(संपादक– मराठी दैनिक देशोन्नति, हिन्दी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)
(संपर्क : 98225 93921)
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