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डब्ल्यूएचओ की दादागिरी : षडयंत्र समझना जरूरी

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–प्रकाश पोहरे (संपादक, मराठी दैनिक देशोन्नति, हिन्दी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)

विश्व के सभी नागरिकों को अमीर, गरीब या धार्मिक और जातीय भेदभाव के बिना सर्वोत्तम स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के महान उद्देश्य के साथ स्थापित विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की दादागिरी क्या दुनिया में आगे भी जारी रहेगी? ऐसा अहम सवाल अब उठने लगा है। इसका कारण यह है कि डब्ल्यूएचओ ने लिकटेंस्टीन और होली सी को छोड़कर शेष 194 सदस्य देशों के साथ महामारी रोगों पर एक समझौता करने और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों में दो महत्वपूर्ण संशोधन करने का निर्णय लिया है। यह समझौता और ये विनियम सभी सदस्य देशों पर बाध्यकारी होंगे। दुनिया भर में इस संधि और इन संशोधनों का विरोध शुरू हो गया है। इंग्लैंड के डॉ. जॉन कैंपबेल ने 21 अप्रैल, 2023 को इन संशोधनों के खिलाफ एमपी आंद्रे ब्रिगिट द्वारा दिए गए भाषण को यूट्यूब पर पोस्ट किया है। विशेष रूप से इंग्लैंड में 1,56,000 मतदाताओं ने महामारी समझौते और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों में संशोधन पर बहस का आह्वान किया, जिससे यह पता चलता है कि यह समझौता और संशोधन कितने गंभीर हैं!

डब्ल्यूएचओ कैसे काम करता है?

डब्ल्यूएचओ का मुख्यालय जिनेवा, स्विटज़रलैंड में है और इसके सभी कर्मचारी स्विटज़रलैंड में पूरी तरह से कर-मुक्त हैं। इसका अर्थ है कि उन्हें कोई कर नहीं देना पड़ता। इसके अलावा इन सभी कर्मचारियों को डिप्लोमैटिक प्रोटेक्शन (राजनैतिक संरक्षण) भी दिया जाता है।(क्या ये लोग भगवान के फरिश्ते है?) इसका मतलब यह है कि अगर ये कर्मचारी कोई आपराधिक अपराध करते हैं, तो उनके खिलाफ दुनिया की किसी भी अदालत में कोई मामला दर्ज नहीं किया जा सकता! कुछ साल पहले, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में डब्ल्यूएचओ के 83 कर्मचारियों ने महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार किया था। एमपी ब्रिगिट ने कहा कि इनमें एक तेरह वर्षीय लड़की भी शामिल थी, बाद में मामले को शांत कर दिया गया था। उस समय कोई कोर्ट केस नहीं होता था, लेकिन डब्ल्यूएचओ द्वारा दिया गया तर्क बहुत ही हास्यास्पद था। उस वक्त डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि जिन महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ है, वे हमारे किसी हेल्थ प्रोजेक्ट से नहीं जुड़ी हैं, इसलिए हमारा इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।(ये तो बेशर्मी और नालायकी की हद हो गई, क्या ये गंभीर नही लगता आपको? )

डब्ल्यूएचओ की मुख्य उपसंस्था वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली (डब्ल्यूएचए) है और इसमें भी सभी 194 देशों के प्रतिनिधि शामिल हैं, जो डब्ल्यूएचए के महानिदेशक का चुनाव करते हैं। और यही महानिदेशक, स्वास्थ्य व चिकित्सा-दवा के क्षेत्र में दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति होता है।

बेशक, 1948 में दुनिया में सभी को सबसे अच्छी स्वास्थ्य सेवा देने के मिशन के साथ शुरू हुई इस संस्था में धीरे-धीरे दबंगों की घुसपैठ हो गई और इसका मुख्य कारण यह था कि डब्ल्यूएचओ के पास एकछत्र अधिकार, दवा कंपनियों का गठजोड़ और अपने फायदे के लिए उनकी ‘लॉबिंग’! पिछले 74-75 सालों में डब्ल्यूएचओ पूरी तरह से दवा कंपनियों के शिकंजे में आ चुका है और उसकी नेक- नीति हमेशा पीछे चली गई है। ऐसा प्रतिपादन आंद्रे ब्रिगिट ने अपने भाषण में किया है।

‘कोरोनील’ का किस्सा!

इसी भाषण में डब्ल्यूएचओ कितना खराब चल रहा है, यह दिखाने के लिए सांसद ब्रिगिट ने उल्लेख किया कि कैसे योगगुरु रामदेव बाबा की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद द्वारा प्रस्तुत की गई और 2020 में भारतीय बाजार में आई दो दवाएं, अर्थात् श्वासरी और कोरोनील, फ्लॉप करायी गईं। उस समय भारत में डॉ. हर्षवर्धन गोयल स्वास्थ्य मंत्री थे और उन्होंने जनता को जानकारी दी कि कोरोनील और श्वसारी कोरोना बीमारी की दवा है। 23 जून 2020 बिहार के एक नागरिक ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण द्वारा जनता को गुमराह करने के लिए बिहार की एक अदालत में कोरोनील के खिलाफ एक आपराधिक मामला दायर किया, जिससे स्वास्थ्य मंत्रालय की बहुत हाराकिरी हुई। इसलिए 30 जून, 2020 को स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को कोर्ट में यह खुलासा करना पड़ा कि कोरोनील सिर्फ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की दवा है, कोरोना की दवा (इलाज) नहीं है। यही डॉ. हर्षवर्धन 22 मई 2020 को विश्व स्वास्थ्य सभा (डब्ल्यूएचए) के अध्यक्ष चुने गए थे। डब्ल्यूएचओ डॉ. हर्षवर्धन गोयल जैसे स्वास्थ मंत्री और डब्ल्यूएचए का अध्यक्ष को भी डब्लू एच ओ कैसे मुश्किल मे डाल सकता है, ब्रिगिट ने यह ज्वलंत उदाहरण दिया है।

डब्ल्यूएचओ और दवा कंपनियां

सांसद ब्रिगिट ने अपने भाषण में इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कौन वास्तव में डब्ल्यूएचओ के लिए भुगतान (खर्च) करता है! उनके अनुसार, सदस्य देशों द्वारा डब्ल्यूटीओ को केवल 40प्रतिशत दिया जाता है, जबकि शेष 60प्रतिशत ‘स्वैच्छिक निजी कंपनियों’ से आता है। ये निजी दवा कंपनियां बेहद ताकतवर हैं। एमपी ब्रिगिट ने कहा कि डब्ल्यूएचओ का पूरा खर्च फिलहाल इन्हीं दवा कंपनियों के भरोसे चल रहा है। हकीकत यह है कि डब्ल्यूएचओ को बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से सबसे बड़ा चंदा मिलता है। उसके बाद ही दवा कंपनियों का नंबर आता है।

क्या हैं नियमों में संशोधन?

डब्ल्यूएचओ ने अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों में दो मुख्य संशोधन प्रस्तावित किए हैं। उनमें से, पहले संशोधन के अनुच्छेद 3 में उल्लिखित मानवाधिकारों और मानव गरिमा को मानवीय गरिमा के साथ भ्रमित करने की संभावना है। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि भविष्य में ‘वन हेल्थ’ का मतलब ‘वन हेल्थ फॉर ऑल’ फॉर्मूले के साथ सभी के लिए समान स्वास्थ्य देखभाल है। जिसके अंतर्गत “आयुष” याने आयुर्वेद, योग, युनानी, सिद्ध, और होमिओपॅथी पर भरोसा रखनेवाले और सेवा देनेवाले /लेनेवाले करीबन सभी देश की सरकारे /व्यक्ती /संस्था इस संशोधन का विरोध कर रहे है, जो बहुतही महत्वपूर्ण और गंभीर है। यह संसाधनों के कारण सैकड़ों गरीब देशों में नागरिकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करेगा।

दूसरा संशोधन संविधान के अनुच्छेद 54 में किया जाएगा, जिससे देश में किसी भी देश की स्वायत्तता और आत्मनिर्णय प्रभावित होगा। ऐसा इसलिए है, क्योंकि विनियमन सभी देशों पर बाध्यकारी है, इसलिए किसी देश की सरकार इस संशोधन के बिना स्वास्थ्य देखभाल में सुधार नहीं कर पाएगी। इससे अधिकांश देशों की स्वायत्तता निश्चित ही खतरे में पड़ेगी।

ये दोनों संशोधन डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक (डॉ. टेड्रोस एडनॉम ग्रैबिएसिस) को वैश्विक स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल्स में एक सर्व-शक्तिशाली व्यक्ति बना देंगे। (सुपर पॉवर ) उनके पास किसी भी देश में किसी भी दवा के निर्माण और निर्यात या किसी दवा कारखाने या व्यवसाय को बंद करने की व्यापक शक्तियाँ होंगी। यदि इस महानिदेशक का एक निर्णय भी गलत हुआ, तो पूरे विश्व में चिकित्सकीय आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ब्रिगीट ने कहा कि यह कदम डब्ल्यूएचओ महानिदेशक के साथ सभी शक्तियों को मजबूत करेगा और दुनिया भर में स्वास्थ्य क्षेत्र में अभूतपूर्व अराजकता पैदा करेगा।

इसके लिए उन्होंने डब्ल्यूएचओ द्वारा 2020 में लागू की गई वैक्सीन कंपनियों का उदाहरण दिया। टीके दो प्रकार के होते हैं – एक आरएनए वैक्सीन (आरएनए यानी राइबोन्यूक्लिक एसिड या प्रोटीन)। इसके शरीर में जाने के बाद रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और संक्रमण की संभावना कम हो जाती है। एक और टीका एमआरएनए, यह मैसेंजर राइबोन्यूक्लिक एसिड है. वैक्सीन के शरीर में प्रवेश करने के बाद, यह एक कोशिका को प्रोटीन बनाने का निर्देश देता है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। वर्ष 2020 में डब्ल्यूएचओ ने इन दोनों प्रकार के टीकों को मंजूरी दी थी, जिससे अभूतपूर्व भ्रम की स्थिति पैदा हो गई थी।

कुछ देश आरएनए टीके चला रहे थे, जबकि अन्य एमआरएनए टीके चला रहे थे। इसलिए अगर एक टीके की एक खुराक ली गई, तो दूसरे टीके की दूसरी खुराक नहीं ली जा सकेगी। इससे कई जगहों पर टीकों की भारी कमी हो गई और भ्रम की स्थिति पैदा हो गई थी। सांसद ब्रिगिट ने याद दिलाया कि इसी तरह का काम डब्ल्यूएचओ ने लॉकडाउन के मामले में किया था।

दिलचस्प बात यह है कि जब दुनिया इस बड़े बदलाव का विरोध कर रही है, तो भारत के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया (वे पीएचडी हैं) या भारत सरकारने या कोई भी सांसद ने इस पर कुछ भी नहीं कहा या कोई कार्रवाई नहीं की, जो निश्चित रूप से चौंकाने वाला है। क्योंकि दुनिया में सबसे बड़ी आबादी और लोकतंत्र वाला देश इतना बेखबर नहीं रह सकता।

– प्रकाश पोहरे
(संपादक– मराठी दैनिक देशोन्नति, हिन्दी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)
संपर्क : 98225 93921
2prakashpohare@gmail.com

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