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‘ऊपर भजन, अंदर तमाशा’… कब तक देखते रहेंगे?

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प्रकाश पोहरे (प्रधान संपादक- मराठी दैनिक देशोन्नति, हिंदी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)

सरकार द्वारा सार्वजनिक रूप से ‘प्रेस कॉन्फ्रेंस’ में जिसे समाचार बताया जाता है, वह ‘समाचार’ न होकर, ‘विज्ञापन’ होते हैं. लेकिन सरकार जिन बातों को बड़ी मुश्किल से छुपाने की कोशिश करती है, असली खबर तो वहीं छुपी होती है! इसे एक खांटी पत्रकार ही समझता है।

सत्य, ज्ञान, सूचना, वास्तविकता, तथ्य ये शब्द पिछले दस वर्षों में कुंद हो गये हैं। जैसे समुद्र में ज्वार उठता है; इस प्रकार झूठ, अर्धसत्य, विकृतियाँ हमारे कानों में जोर-जोर से बजने लगीं। एक पुरानी कहावत है कि ‘उथला पानी बहुत शोर करता है’ या ‘अधजल गगरी छलकत जाए’। जब कोई शोर मचाना शुरू करता है, तो लोगों को एहसास होता है कि उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं है, इसीलिए वह चिल्ला रहा है! और, वास्तव में यही सच होता है। मोदी सरकार और उसकी ‘गोदी मीडिया’ को देखकर लोग अब उसकी छवि से वाकिफ हो गए हैं। इन सभी इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के पास सत्ता की ‘चाटूकारिता’ करने के अलावा और क्या काम है..?

नरेंद्र मोदी के ‘दिव्य’ शासन से पहले भारत बेहद पिछड़ा था। देश में न सड़कें थीं, न बिजली केंद्र, न कोयला खदानें, न खनन परियोजनाएँ….! यहां कोई प्राकृतिक गैस नहीं थी, परिवहन के लिए कोई पाइपलाइन नहीं थी, कोई टेलीफोन टावर नहीं था और उस मामले में कोई फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क भी नहीं था… कोई गोदाम नहीं, कोई हवाई जहाज नहीं, कोई हवाई अड्डा नहीं… सब मोदी के कार्यकाल में हुआ और हर साढ़े सात सेकेंड में एक शौचालय के निर्माण की रिकॉर्डतोड़ ‘विकास दर’ हासिल की गई। हम कल्पना कर सकते हैं कि इससे हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, बिजली केंद्र आदि छोटी-मोटी चीजें कितनी तेजी से बनाई गई होंगी! आज का ‘गोदी मीडिया’ वर्तमान शासकों की छवि बना रहा है और ऐसी खबरें चला रहा है कि ‘विकास पुरुष’ मोदीजी प्रधानमंत्री बन गए, तभी देश का ‘भाग्य’ बदल पाया है। मूलतः ‘ऑटिव जर्नलिज्म’ आज की वास्तविकता है, जो इस बात का ध्यान रखती है कि किसी भी प्रकार की सत्ता, शासक, व्यवस्था को ठेस न पहुंचे। जहां विवेक और विचारों की बजाय भावनाओं को महत्व दिया जाता है।

बड़े आश्चर्य की बात है कि आज कोई भी अंग्रेजी-हिन्दी चैनल ‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ जैसे गंभीर मुद्दे पर बात नहीं कर रहा है। कैसे बात करें..? यदि सरकार पक्ष नहीं लेती है, तो उनके विज्ञापन रोक दिए जाते हैं, और कोई विज्ञापन नहीं होने का मतलब है कि समाचार चैनल या समाचार-पत्र व्यवसाय से बाहर हो जाते हैं। इसीलिए पत्रकारिता जगत में इस बात की होड़ मची है कि मोदी सरकार का कसीदा कौन गाए। (उर्दू शायरी में राजा-महाराजाओं की शान में कविताएं लिखी जाती थीं, जिन्हें ‘क़सीदा’ कहा जाता है।)

अब हकीकत देखिए। मोदी को उनके व्यापारी और पूंजीपति मित्र, सीमा पर लड़ने वाले सैनिकों से अधिक बहादुर लगते हैं। इसलिए मोदीजी ने देश को इन बहादुर लोगों को सौंपने का फैसला किया है। मोदी ने तेजी से ‘सबका विकास’ शुरू किया और उस विकास का काम भी तेजी से शुरू हो गया। अब यह सब सरकार बनाए और हम इसे बनाए रखने में अपना समय क्यों बर्बाद करें, इसलिए मोदी जी ने इसे बेचने के बजाय अपने बहादुर पूंजीपतियों यानी व्यापारियों को विकास हस्तांतरित करने का फैसला किया। पिछले नौ-दस वर्षों में 25 हवाई अड्डे, 26,700 किमी राजमार्ग, 6 गीगाबाइट जलविद्युत और सौर ऊर्जा संयंत्र, कोयला खनन की 160 परियोजनाएं, 8154 किमी की प्राकृतिक गैस पाइपलाइन, 14,917 टेलीकॉम टावर्स, 210 मीट्रिक टन क्षमता के गोदाम, 400 रेलवे स्टेशन, लाखों हेक्टेयर सरकारी जमीन जैसी सरकारी संपत्तियों को अपने शक्तिशाली व्यापारियों और पूंजीपति मित्रों को सस्ते दाम पर बेच दिया गया है या उन्हें हस्तांतरित कर दिया गया है। तो यह है ‘गोदी मीडिया’ की हकीकत… न कुछ बताएगा, न दिखाएगा।

देश को और विकसित करने के लिए सत्ता बरकरार रखनी होगी, सत्ता बरकरार रखने के लिए चुनाव जीतना होगा, जीतने के लिए पार्टी को मजबूत करना होगा और पार्टी को मजबूत करने के लिए अपार धन की जरूरत होगी, तो फिर..मोदीजी के दिमाग में बिजनेस ‘सॉफ्टवेयर’! तभी ‘कमर्शियल सॉफ्टवेयर’ से भरे दिमाग में ‘इलेक्शन बॉन्ड’ की योजना आई। इसके लिए कई कानून न सिर्फ मरोड़े गए, बल्कि सचमुच तोड़े गए। निःसंदेह, चूँकि यह लेन-देन भारतीय स्टेट बैंक के माध्यम से किया गया था, दान के सभी विवरण केवल कर्तव्यपरायण, माईबापबसरकार को ही समझ में आएंगे। भ्रष्टाचार के इस महामेरु को 2017-18 के बजट सत्र में राज्यसभा को विश्वास में लिए बिना ही ‘मनी बिल’ के रूप में मंजूरी दे दी गई। इस योजना के तहत 16 हजार करोड़ से ज्यादा के बॉन्ड खरीदे गये। बीजेपी को 8 हजार करोड़ से ज्यादा के बांड मिले। बेशक, देश की सभी पार्टियों को मिले कुल चंदे में से आधे से ज्यादा चंदा सत्ताधारी बीजेपी को ही मिला।

15 फरवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से सरकार की 2018 चुनाव प्रतिबंध योजना को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि यह योजना संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत मतदाताओं को दिए गए सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है। साथ ही बॉन्ड की बिक्री तुरंत रोकने का आदेश दिया गया। कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को आदेश दिया था कि वह अब तक खरीदे गए बांड की विस्तृत जानकारी चुनाव आयोग को दे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित समय सीमा समाप्त होने से दो दिन पहले, भारतीय स्टेट बैंक ने ‘उल्लू बनाने’ के तहत चुनावी बांड का विवरण प्रस्तुत करने के लिए तीन महीने का समय देने के लिए अदालत से अनुरोध किया। इसकी वजह यह थी कि बीजेपी सरकार ने चुनावी बांड को लेकर जो ‘गोरखधंधा’ किया, उसकी घोषणा लोकसभा चुनाव से पहले न हो जाए। ऐसा करके भारतीय स्टेट बैंक ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह ‘मोदी का स्टेट बैंक’ है। वही ‘स्टेट बैंक ऑफ मोदी’ ने चुनाव बांड का ब्योरा चुनाव आयोग को सौंपा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी आयोग को आदेश दिया कि वह इस ब्यौरे को 21 मार्च तक सार्वजनिक कर दें।

अब तक जारी जानकारी के आधार पर निम्नलिखित बातें सामने आई हैं। वह यानी इलेक्शन बॉन्ड स्कीम आज़ाद भारत के इतिहास का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। ये बात सिर्फ मोदी विरोधी ही नहीं, बल्कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अर्थशास्त्री पति परकल्ला प्रभाकर भी कह रहे हैं। ‘चंदा दो, धंधा लो’ इस सिक्के का एक पहलू है, सिक्के का दूसरा पहलू है रंगदारी लेकर जांच बंद करना या रंगदारी के लिए छापेमारी करना, जांच शुरू करना यानी ‘उगाही’ करना।

जिन कंपनियों पर ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स विभाग ने छापे मारे हैं, उनसे बीजेपी सरकार ने खूब ‘चंदा’ लिया है, क्योंकि छापों के बाद ही इन कंपनियों ने करोड़ों रुपये के बॉन्ड खरीदे हैं। भाजपा ने जिनसे चंदा लिया, उन्हें हजारों करोड़ के प्रोजेक्ट दे दिए गए. घाटे में चल रही कंपनियों ने भी बीजेपी को करोड़ों रुपये का चंदा दिया है। निःसंदेह, ये मुखौटा कंपनियाँ रातों-रात ‘कुकुरमुत्तों’ की तरह उग आईं कंपनियाँ हैं। यह स्पष्ट तथ्य है कि जो काला धन भारत से बाहर गया था, वह इलेक्टोरल बांड के माध्यम से भाजपा को दे दिया गया।

यहां सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि चुनाव आयोग को ये सारी जानकारी मिलने के बावजूद उन्होंने इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की है। इसका मतलब यह है कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल की बिल्ली बन गया है और यही लोकतंत्र के लिए वास्तविक खतरा है। इस बांड घोटाले से ध्यान भटकाने के लिए ही झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की गिरफ्तारी की गई। इसका बुद्धिमान पाठकों ने ध्यान रखना चाहिए।

इतना कुछ होने के बावजूद माननीय प्रधानमंत्री जी ‘अब की बार, चार सौ पार’ की घोषणा करते हैं। ऐसा ‘तथाकथित’ सभ्य मध्यम वर्ग के समर्थन के कारण है। इसके पीछे असली कारण मुस्लिम समुदाय के प्रति उनके मन में पैदा किया गया तथाकथित भय, द्वेष या नफ़रत है और इसके कारण देश का मध्यम वर्ग मोदी के नेतृत्व वाले भ्रष्टाचार और अत्याचार का भी समर्थक बन गया लगता है। तभी तो नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान ध्यान खींचती है।

लोकतंत्र में राजनीति अपरिहार्य होती है, इस राजनीति के दो प्रकार हैं- रचनात्मक और विनाशकारी। रचनात्मक राजनीति से जनता, राज्य और देश की प्रगति होती है, लेकिन विनाशकारी राजनीति के कारण जनता, राज्य और देश का पतन होता है। एक बार निर्वाचित होने के बाद अगले पांच वर्षों तक मतदाताओं का निर्वाचित प्रतिनिधियों पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। एक बार सत्तावादी राजनेता सत्ता में आ जाते हैं, तो वे प्रशासन और समाज में सत्ता के सभी केंद्रों पर नियंत्रण कर लेते हैं और एक सर्वशक्तिमान सम्राट की तरह लापरवाही से काम करना शुरू कर देते हैं।

हाल के दिनों में भारतीय राजनीति में ‘जिसके हाथ में खरगोश, वही पारधी’…. यानी ‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ जैसी एक नई नीति सामने आई है। पहले कहा जाता था कि सत्ता राजनीतिक नेताओं को भ्रष्ट कर देती है, लेकिन अब सत्ता भ्रष्ट राजनीतिक नेताओं के पापों को धोकर सत्ता में लाने का जरिया बन गई है।

आखिर कब तक इस प्रकार ‘ऊपर से भजन, अंदर से तमाशा” देखा जाएगा..? यदि आप अब भी इस खतरे की घंटी को नहीं सुन सकते, तो या तो आप बहरे हैं, या आप बहरे होने का नाटक कर रहे हैं और अपना स्वार्थ पाल रहे हैं..!

जिन लोगों के ध्यान में यह सब आ गया है और वे इस व्यवस्था को बदलना चाहते हैं, तो उनके लिए यही एक अवसर है, जो पांच साल में एक ही बार आता है। और यह अवसर, केवल आपकी उंगलियों पर उपलब्ध है! अब यह आपके विवेक पर निर्भर है कि इस अवसर का लाभ उठाना है या फिर अनजान बने रहना है…!!

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– प्रकाश पोहरे
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