Homeप्रहारक्या किसान इस खतरे से वाकिफ हैं?

क्या किसान इस खतरे से वाकिफ हैं?

Published on

प्रकाश पोहरे, प्रधान संपादक, दैनिक ‘देशोन्नती’, हिंदी दैनिक ‘राष्ट्र प्रकाश’, साप्ताहिक ‘कृष्णकोणती’

राष्ट्रीयता हमारी प्रेरणा है, सर्वसमावेशिता हमारा दर्शन है और सुशासन हमारा मंत्र है। यह त्रिसूत्री प्रस्ताव भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में दिया था। शिक्षा, रोजगार, गारंटीकृत मूल्य, स्वास्थ्य सुविधाएं, दलित-आदिवासी सुविधाएं, स्मार्ट सिटी, गंगा जल शुद्धिकरण उस समय के घोषणापत्र के मुद्दे थे। बीजेपी के 2019 के घोषणापत्र से ये सारे मुद्दे गायब हो गए। इसकी जगह कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, अनुच्छेद 35ए रद्द करने, घुसपैठ को रोकने, समान नागरिक संहिता को लागू करने, नागरिकता संशोधन अधिनियम, राम मंदिर, आतंकवाद के उन्मूलन आदि ने ले ली। धार्मिक ध्रुवीकरण की शुरुआत राष्ट्रवाद और हिंदू धर्म से जुड़े मुद्दों से हुई। इस हंगामे में किसानों की दोगुनी आमदनी का मुद्दा कब गुम हो गया, किसी को पता ही नहीं चलने दिया गया।

पिछले साल 2022-23 का बजट पेश करते हुए मोदी सरकार ने ढोल पीटकर कहा था कि हम ‘अमृतकाल’ में प्रवेश कर रहे हैं, लेकिन जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, धीरे-धीरे यह महसूस किया जा रहा है कि यह समय किसानों, मजदूरों और आम लोगों के लिए ‘संकट का समय’ है।

हाल ही में आई ‘ऑक्सफैम’ की एक रिपोर्ट कहती है कि देश की आय में 84 प्रतिशत की गिरावट आई है, वहीं दूसरी ओर सीएमआईई का आंकड़ा कहता है कि 40 प्रतिशत मध्यम वर्ग को गरीबी में धकेल दिया गया है। 12.5 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई है।

आर्थिक असमानता बहुत बढ़ गई है। देश के एक फीसदी अतिधनिकों के पास औसत 95 करोड़ लोगों की तुलना में चार गुना ज्यादा संपत्ति है। महंगाई चरम पर है। तीन बड़े संकटों– बेरोजगारी, कृषि और लघु उद्योगों का समाधान निकालने के लिए ही जनता ने मोदी सरकार को ताकत दी थी। इस सरकार ने इन तीनों स्तरों पर लोगों को पूरी तरह निराश कर दिया है।

पिछले आठ वर्षों की अवधि कृषि क्षेत्र के लिहाज से बहुत ही धूमधड़ाम रहा है। किसानों की आय दोगुनी करने की घोषणा, डेढ़ गुना गारंटी मूल्य की गुगली, नोटबंदी का फैसला, जीएसटी लागू करना, दिल्ली की सीमा पर किसानों का लंबा-चौड़ा आंदोलन आदि जैसे उथल-पुथल पहली बार हुए। इसके कारण प्रबल राजनीतिक और सामाजिक घुसपैठ थी। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 1984 के बाद तीस वर्षों में पहली बार केंद्र में स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई। यह तख्तापलट, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों के दौरान किसानों के बीच तीव्र असंतोष की पृष्ठभूमि के खिलाफ था। भाजपा, कृषि और किसानों के मुद्दों की मजबूत राजनीतिक पूंजी बनाने में सफल रही। लेकिन सत्ता में आने के बाद सरकार द्वारा अपनाई गई नीति और किसानों को लेकर लिए गए फैसलों ने किसानों को ‘भरोसे की भैंस गई पानी में’ कहने का मौका दे दिया।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 फरवरी, 2016 को रायबरेली (उत्तरप्रदेश) में किसानों की एक सभा को संबोधित करते हुए एक सपना व्यक्त किया– ‘मैं 2022 तक किसानों की आय दोगुनी देखना चाहता हूं। उस सभा के बाद कृषि से संबंधित योजनाएं, निर्णय, प्रस्ताव इन उल्लेखों के बिना पूरे नहीं होंगे। यह स्वर्ग-दर्शन जैसे शब्द की तरह था। यह कभी नहीं कहा जाता कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए सरकार के पास कौनसी जादू की छड़ी है! आठ साल में सरकार कोई ऐसी योजना लागू नहीं कर पाई, जिससे किसानों की आय दुगुनी हो जाए! इसके उलट उनकी संख्या पहले से कहीं ज्यादा घट गई है।

केंद्रीय कृषि मूल्य आयोग इन दिनों खरीफ 2023-24 के लिए गारंटीकृत मूल्य निर्धारित करने के लिए राज्यों के दौरे पर है। पिछले हफ्ते ही केंद्रीय कृषि मूल्य आयोग ने राज्य सरकारों को सलाह दी कि वे उचित मूल्य की गारंटी देंगे, लेकिन उत्पादन लागत कम करें। एक ओर सरकार, कम लागत वाली खेती के लिए जैविक खेती की नीति तय नहीं कर रही है और दूसरी ओर यह सुझाव देना अजीब है कि कृषि के लिए आवश्यक डीजल के दाम बढ़ाए जाएं और उत्पादन लागत ऊपर से कम की जाए! यह विरोधाभास केंद्रीय कृषि मूल्य आयोग की नीति में परिलक्षित होता है।

पिछले दो दशकों से हम किसानों की उत्पादन लागत को कम करने के लिए सरकार को कुछ उपाय सुझा रहे हैं। केंद्र सरकार ने भी छह साल पहले जैविक खेती नीति की घोषणा की थी, लेकिन इसके अमलीकरण के लिए सरकार के कदम बीच में ही कहीं रुक गए हैं। इस प्रकार यह जैविक कृषि नीति की दुखद कहानी है। महाराष्ट्र में अक्टूबर 2018 में स्थापित ‘डॉ. पंजाबराव देशमुख जैविक खेती मिशन’ का क्या हुआ, यह अलग से बताने की जरूरत नहीं है। यह दुख की बात है कि प्रायोगिक आधार पर शुरू किया गया एक अच्छा अभियान भी हमारी सरकार द्वारा ईमानदारी से नहीं चलाया जा सकता है। कृषि मूल्य आयोग कब विचार करेगा कि नीति को जमीन से ऊपर उठाने की जरूरत है?

कृषि सामग्री की लागत कई गुना बढ़ गई है, डीजल के दाम बढ़ गए हैं, रासायनिक खाद के दाम आसमान छू गए हैं। इसलिए अब किसान जैविक खेती पर स्विच करना चाह रहे हैं, लेकिन कम लागत वाली जैविक खेती कोई विकल्प नहीं है। मजदूरों की कमी होने लगी है, क्योंकि एफसीआई ने न्यूनतम मूल्य पर खाद्यान्न वितरण का अबाध सिलसिला शुरू कर दिया है। अकेले एक हफ्ते में पंद्रह से सोलह करोड़ लोग एक दो दिन ही काम करते हैं. इसीलिए किसान, अवहनीय श्रम दरों के कारण बहु-फसल से परहेज कर रहे हैं। कृषि मूल्य आयोग की स्थापना 1 जनवरी 1965 को तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने की थी। इस आयोग के नेक उद्देश्य कृषि में उत्पादन लागत को निकालकर खेतों में उगाई जाने वाली 23 किस्मों की फसलों के गारंटीमूल्य के लिए सिफारिशें करना, कृषि में नए प्रयोगों को बढ़ावा देना, किसानों के साथ समन्वय स्थापित करना और समस्याओं को समझना था, लेकिन शास्त्रीजी की मृत्यु के बाद यह संगठन सरकार की कठपुतली बन गया।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि हरित क्रांति के कारण कृषि उत्पादन और उत्पादकता में भारी वृद्धि हुई, लेकिन कृषि मूल्य आयोग लागत बढ़ने के कारण किसानों की आय के प्रतिशत में कमी का शोध नहीं करता है। सरकार के विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए 2016 से हर साल कृषि क्षेत्र की सालाना ग्रोथ कम से कम 10.4 फीसदी होनी चाहिए थी। अब पांच साल में आय दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल करना है, तो कृषि क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 14.86 प्रतिशत होनी चाहिए। यह इतिहास में अब तक कभी हासिल नहीं हुआ है और अब कृषि विकास दर माइनस 1.5 प्रतिशत है। नाबार्ड द्वारा 2013 में किए गए ‘अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण’ के अनुसार, एक किसान परिवार की मासिक आय केवल 8931 रुपये थी (पारिवारिक आय, व्यक्तिगत नहीं)। इसी रिपोर्ट के अनुसार किसानों को कम आय के अलावा बढ़ते कर्ज, वित्तीय सुविधाओं की कमी, बीमा सुविधाओं की कमी जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के सर्वेक्षण के अनुसार, यह मासिक आय 6426 रुपये जितनी कम है। अगर महंगाई दर इसी के साथ-साथ चलती रहे, तो वास्तविक आय में और कमी आ सकती है। किसान की आय का मुख्य साधन उसकी कृषि, उसका पशुधन है। नीति आयोग द्वारा 2017 में प्रकाशित नीति पत्र ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम’ में किसान परिवार की कुल आय में इन दोनों कारकों का योगदान लगभग 70 प्रतिशत है। आय को दोगुना करने का यह सरल गणित है, जिसका अर्थ है– आय में वृद्धि या इन मुख्य स्रोतों से शुद्ध लाभ! लेकिन इस ‘नीति पत्र’ में सुझाए गए आठ सुधारों में कृषि उपज का उचित मूल्य दिए जाने का बिंदु सबसे आखिरी है। उत्पादन लागत निकालने की प्रक्रिया में एक बड़ी कमी यह है कि किसानों द्वारा वहन की गई लागत और सरकार द्वारा वहन की गई लागत, कहीं भी मिलतीजुलती नहीं है। यह सर्वविदित है कि कृषि की उत्पादन लागत का एक बड़ा हिस्सा फसल कटने के बाद भी खर्च हो जाता है।

गांरटी मूल्य निर्धारित करते समय किसानों एवं मजदूरों के श्रम का पूरा पारिश्रमिक, अन्य आदानों की लागत, दिन-रात निर्बाध बिजली एवं पानी, गुणवत्तापूर्ण बीज एवं उस पर सब्सिडी, भूमि की लागत, क्षति की लागत को ध्यान में रखते हुए गारंटी मूल्य जंगली जानवरों के साथ-साथ थ्रेशिंग/थ्रेशिंग, सफाई-ग्रेडिंग, पैकिंग, परिवहन, कटाई आदि पर कुल लागत का 20 से 40 प्रतिशत खर्च होता है। न्यूनतम आधार मूल्य प्राप्त करते समय इस लागत को निष्पक्ष रूप से नहीं लिया जाता है। उत्पादन की लागत और 50 प्रतिशत लाभ कैसे अर्जित किया जाता है, इस बारे में स्पष्ट जानकारी ‘सार्वजनिक डोमेन’ में कभी भी उपलब्ध नहीं होती है और यहां तक ​​कि मांगे जाने पर भी यह आसानी से उपलब्ध नहीं होती!

हम जानबूझकर मोदी सरकार के कृषि प्रदर्शन की तुलना अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार (1998-99 से 2003-04) और पीवी नरसिम्हा राव (1991-92 से 1995-96) के साथ करेंगे। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये दोनों सरकारें वैश्वीकरण के दौर की हैं। नरसिम्हा राव सरकार के दौरान, कृषि सकल राष्ट्रीय आय वृद्धि की वार्षिक दर 2.4 प्रतिशत थी, जबकि सकल राष्ट्रीय आय की दर हर साल 5.2 प्रतिशत थी। वाजपेयी सरकार के दौरान कृषि विकास की दर में और वृद्धि हुई। यह वृद्धि 2.9 प्रतिशत थी। इसी अवधि के दौरान कुल राष्ट्रीय सकल आय की दर 6 प्रतिशत थी। यूपीए (मनमोहन) सरकार आने के बाद भी अगले दस वर्षों तक कृषि विकास का ग्राफ ऊपर ही चढ़ा रहा। 2004-05 और 2013-14 के बीच, कृषि-सकल राष्ट्रीय आय 3.7 प्रतिशत दर्ज की गई थी, जबकि इसी अवधि के दौरान सकल राष्ट्रीय आय में वृद्धि 7.9 प्रतिशत दर्ज की गई थी।

जब मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने की घोषणा की, तो कृषि विकास दर केवल 1.9 प्रतिशत थी। यह आंकड़ा यूपीए सरकार द्वारा अपने पहले चार वर्षों के दौरान हासिल की गई विकास दर का आधा था। इसी तरह सकल राष्ट्रीय आय की दर 7.2 प्रतिशत थी। इस आंकड़े से यह भी पता चला कि मोदी सरकार, यूपीए सरकार (8.9 फीसदी) की तुलना में पिछड़ रही है। वर्तमान अवधि में देश की कृषि विकास दर ऋणात्मक (-1.5 प्रतिशत) हो गई है। किसानों को निश्चित तौर पर ऐसे ‘विकास’ की उम्मीद नहीं थी। इसलिए मोदी सरकार को पिछली सरकारों से बहुत कुछ सीखना है, ताकि वह पिछली किसी भी सरकार से बेहतर करने का दावा कर सके!

मोदी जिस कॉन्फिडेंस के साथ बोलते हैं, उसके हिसाब से 2024 तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे। यदि ऐसा ही रहा, तो उनके कार्यकाल के तीसरे चरण में भी कृषि क्षेत्र में असफलता आसन्न होगी। किसान हाहाकार कर रहे होंगे। उन्हें विचलित करने के लिए युद्ध का उन्माद पैदा किया जाएगा, अथवा धार्मिक उन्माद पैदा किया जाएगा। तब किसान पीछे मुड़कर दस साल पहले के व्हाट्सएप संदेशों पर नजर डाल रहे होंगे, जिन वादों के दम पर उन्होंने अपने जीवन का एक दशक बर्बाद कर लिया है। अगर वे (किसान) प्रदर्शन और हड़ताल करते हैं, तो मीडिया उन्हें ‘देशद्रोही’ घोषित कर देगी और पुलिस डंडों से उनकी उम्मीदों को कुचल देगी। यह तब हुआ, जब दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन शुरू हो ही चुका है। मुद्दा केवल मोदी सरकार या किसी और सरकार का नहीं है। यह उस अस्थिरता का है, जो यह कृषि संकट देश में पैदा करेगा। किसान इस खतरे से वाकिफ हैं या नहीं?

 

Latest articles

आखिर उमा भारती को बीजेपी ने स्टार प्रचारक क्यों नहीं बनाया ?

न्यूज़ डेस्क क्या मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की वरिष्ठ नेता उमा भर्ती...

मुख्तार अंसारी की मौत पर सियासी जंग,अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर साधा निशाना 

न्यूज़ डेस्क एक तरफ लोकसभा चुनाव की तैयारी  चल रही है  दूसरी तरफ यूपी की...

50MP कैमरा के साथ लॉन्च हुआ Vivo T3 5G फोन, 120Hz AMOLED डिस्प्ले के साथ मिलेगा फोन

विकास कुमार वीवो ने भारतीय बाजार में मिड-रेंज स्मार्टफोन वीवो टी थ्री फाइव जी...

Samsung Galaxy M55 5G हुआ लॉन्च,भारत में 45 हजार रुपए में मिलेगी ये फोन

विकास कुमार सैमसंग गैलेक्सी एम 55 फाइव जी को कंपनी ने लॉन्च कर दिया है।...

More like this

आखिर उमा भारती को बीजेपी ने स्टार प्रचारक क्यों नहीं बनाया ?

न्यूज़ डेस्क क्या मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की वरिष्ठ नेता उमा भर्ती...

मुख्तार अंसारी की मौत पर सियासी जंग,अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर साधा निशाना 

न्यूज़ डेस्क एक तरफ लोकसभा चुनाव की तैयारी  चल रही है  दूसरी तरफ यूपी की...

50MP कैमरा के साथ लॉन्च हुआ Vivo T3 5G फोन, 120Hz AMOLED डिस्प्ले के साथ मिलेगा फोन

विकास कुमार वीवो ने भारतीय बाजार में मिड-रेंज स्मार्टफोन वीवो टी थ्री फाइव जी...